________________
सिंह
अष्टांग योग के प्रथम अंग यम से प्राप्त लब्धियों के बारे में उल्लेख है कि अहिंसाव्रत का पालन करने वाले योगी के सान्निध्य में व्याघ्र, आदि हिंसक पशु भी अपनी क्रूर एवं हिंसक वृत्ति वैर भाव को त्याग देते हैं। सत्यव्रती का वचन सदैव सत्य होता है, वह वरदान अथवा अभिशाप जो मुँह से कह देता है, सत्य होता है। अस्तेय व्रत की प्रतिष्ठा से योगी के समक्ष निधान प्रगट हो जाते हैं अर्थात् भूमि के अन्दर तथा गुप्त स्थानों के निधान भी प्रगट हो जाते हैं। अपरिग्रह व्रत की साधना से योगी को पूर्वजन्मों का ज्ञान हो जाता है।"
इसी प्रकार अन्य अनेक लब्धियाँ नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, आदि योगांगों की साधना से प्राप्त हो जाती हैं। यहाँ तक कि सर्वज्ञता भी प्राप्त हो जाती है। 2
योगदर्शन के विभूतिपाद में अनेक विभूतियों - लब्धियों का वर्णन हुआ है। उनमें कुछ ज्ञान विभूतियां हैं जिनका सम्बन्ध ज्ञान से है तथा कुछ शारीरिक विभूतियाँ शरीर सम्बन्धी हैं। उनमें से प्रमुख ये हैं - अतीतानागत ज्ञान, सर्वभूत-रुतज्ञान, परचित्त ज्ञान, पूर्वजाति ज्ञान, भुवन ज्ञान, तारा व्यूह ज्ञान, कायव्यूहे ज्ञान, उपरान्त ज्ञान और सिद्धदर्शन आदि ज्ञान - विभूतियाँ हैं तथा अन्तर्धान, परकाय प्रवेश, आकाशगमन, हस्तिबल, रूपलावण्य, कायसम्पत, क्षुत्पिपासानिवृत्ति और अणिमा, महिमा आदि का प्रादुर्भाव शारीरिक विभूतियाँ
हैं।
इन विभूतियों के पाँच प्रकार बताये हैं- ( 1 ) जन्म से होने वाली, (2) औषधि से होने वाली, (3) मंत्र से होने वाली, (4) तप से होने वाली और (5) समाधि से प्राप्त होने वाली |
बौद्धदर्शन में लब्धियां
बौद्ध परम्परा में लब्धियों को 'अभिज्ञा' कहा गया है। अभिज्ञा (लब्धियों) के वहाँ दो भेद किये गये हैं- (1) लौकिक और (2) लोकोत्तर । '
1. पातंजल योगसूत्र 2/35-39
2.
पातंजल योगसूत्र 2/40-46, 49, 53, 54, 3/5, 16, 17, 18 आदि
3.
पातंजल योगसूत्र, विभूतिपाद
4.
पातंजल योगसूत्र, 4/1
5. विसुद्धिमग्गो, मग्ग 1
* योगजन्य लब्धियाँ 95