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का अपहरण किया जाता है, वह सब स्थूल चोरी है। तस्करी आदि चोरी के ही रूप हैं।
इसके पाँच अतिचार हैं-(1) स्तेनाहृत-चोरी का माल खरीदना या रखना, (2) तस्कर प्रयोग-चोरों को चोरी करने के लिए उकसाना, उन्हें चोरी के नये-नये तरीके बताना, (3) विरुद्ध राज्यातिक्रम-राज्य के नियमों का उल्लंघन करना, जैसे-कर-चोरी, चुंगी-चोरी आदि, (4) कूटतुला कूटमान-तोल-माप के झूठे पैमाने रखना, कम तोलना, कम नापना आदि, (5) तत्प्रतिरूपक व्यवहार-अच्छी वस्तु में बुरी वस्तु की अथवा अधिक कीमत वाली वस्तु में कम कीमत की वस्तु मिला देना। (4) स्वदारसन्तोष व्रत
इस व्रत में श्रावक अपनी विवाहिता स्त्री के अतिरिक्त अन्य सभी स्त्रियों के साथ मैथुन (अब्रह्मचर्य) का त्याग कर देता है।
___ इस व्रत के पाँच अतिचार हैं-(1) इत्वरिकापरिग्रहीतागमन-काम-सेवन के अभिप्राय से किसी अन्य स्त्री (वेश्या, विधवा, Society giri, Call girl, रखैल (Kept) आदि-जिनका कोई स्वामी अथवा पति न हो) को लोभ देना, (2) अपरिग्रहीतागमन-किसी अविवाहिता अथवा कुमारी कन्या को कामबुद्धि से प्रलोभित करना आदि, (3) अनंगक्रीड़ा-काम-सेवन के अंगों के अलावा अन्य अंगों से काम-तृप्ति करना, यथा-हस्तमैथुन, गुदामैथुन आदि; (4) परविवाहकरण-अपने पुत्र-पुत्रियों और आश्रितों का विवाह करना तो श्रावक का सामाजिक दायित्व माना जाता है, इसलिये करना ही पड़ता है किन्तु श्रावक को अन्य लोगों के विवाह के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिये, यह अतिचार है, (5) काम-भोगतीव्राभिलाषा-काम-भोग की अधिक लालसा रखना। . (5) इच्छापरिमाण व्रत
परिग्रह का सर्वथा त्याग गृहस्थ के लिए सम्भव नहीं है, क्योंकि उसे अपने तथा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए, बच्चों की शिक्षा के लिए तथा समाज में अपनी मान-मर्यादा बनाये रखने के लिए और अतिथियों के
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इत्वरिकापरिग्रहीतागमन और अपरिगृहीतागमन-ये दोनों साधन जुटाने तक ही अतिचार रहते हैं, यदि व्यक्ति उनके साथ काम-सेवन कर लेता है, तब तो अनाचार हो जाता है और व्रत भंग हो जाता है। काम-भोग से अभिप्राय पाँचों इन्द्रियों के भोग से है।
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*116 * अध्यात्म योग साधना *