Book Title: Adhyatma Yog Sadhna
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 441
________________ सैकिण्ड की गति से झनझनाते हैं। हमारे साधारण वार्तालाप के शब्दों की ध्वनि तरेंगें 10 फीट दूर तक जाती हैं और चिन्तन करते समय शरीर से लगभग 2 इंच दूर तक। यद्यपि इन तरंगों की लम्बाई (Wave Length) कम है, किन्तु ये शक्तिशाली अधिक होती हैं। इन पर आंधी, वर्षा, तूफान आदि शक्तियों का कोई प्रभाव नहीं होता और हजारों-लाखों मील तक निर्बाध रूप से चली जाती हैं। इसीलिए अध्यात्मशास्त्रों में शब्दों की अपेक्षा विचारों को अधिक प्रभावशाली माना गया है। यही कारण है कि इंगलैंड, अमेरिका आदि दूरस्थ देशों से रेडियो पर समाचार Short Wave पर प्रसारित किये जाते हैं। शब्द का उच्चारण छह प्रकार से किया जाता है-(1) ह्रस्व, (2) दीर्घ, (3) प्लुत, (4) सूक्ष्म, (5) सूक्ष्मतर, (6) सूक्ष्मतम। 'मन्त्र' स्वर-विज्ञान-शब्द, विज्ञान, तथा ध्वनि-विज्ञान की दृष्टि से प्लुत उच्चारण (तेज स्वर) में बोला जाने वाला शब्द है। इसे मन्त्र-शास्त्र में संजल्प कहा गया है। ह्रस्व दीर्घ स्वर जल्प हैं। तीसरी स्थिति आती है सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम शब्द की। इसे अन्तर्जल्प कहा गया है। सूक्ष्म शब्द की स्थिति में ध्वनि इतनी सूक्ष्म होती है कि मनुष्य यदि स्वर-प्रेक्षा (स्वर पर ध्यान केन्द्रित करे) तो उसे ही अपने स्वर यन्त्रों की ध्वनि सुनाई देती है, दूसरा उस ध्वनि को नहीं सुन पाता। सूक्ष्मतर स्थिति में क्षीण ध्वनि गुञ्जारव (भ्रमर गुञ्जन) के समान साधक को सुनाई देती है। इसी को हठयोग में अनाहत नाद और जप योग में भ्रामरी जप की स्थति कहा गया है। सूक्ष्मतम शब्दों की ध्वनि साधक को स्वयं भी नहीं सुनाई देती। यह मन (मस्तिष्क) में होती रहती है। श्वासोच्छ्वास से भी इसका सम्बन्ध नहीं रहता। यह मन के शब्दात्मक चिन्तन-मनन के रूप में होती है। यही स्थिति मन्त्रशास्त्र की दृष्टि से मन्त्र के शब्द और अर्थ का एकाकार हो जाना है। इस दशा में साधक को वचनसिद्धि हो जाती है, उसे शाप और अनुग्रह की शक्ति प्राप्त हो जाती है, उसके मुख से जो भी निकल जाता है, वह सत्य होकर रहता है। यह सूक्ष्मतम शब्द की प्रथम स्थिति होती है। प्रथम स्थिति के उपरान्त क्रमशः सूक्ष्मतम शब्द की अन्तिम स्थिति आती है। इस स्थिति में शब्द ज्ञानात्मक (Cognitive) हो जाता है। साधक मन्त्र के गूढ़तम रहस्य तक पहुँच जाता है, उस रहस्य में उसका स्वरूप-तादात्म्य स्थापित हो जाता है तथा मन्त्र का साक्षात्कार हो जाता है। मन्त्र का साक्षात्कार * मंत्र-शक्ति -जागरण * 365 *

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