Book Title: Adhyatma Yog Sadhna
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 460
________________ इस अरुण वर्ण के ' णमो सिद्धाणं' पद को साधक उसमें तल्लीन बना देखता रहे, तन्मय हो जाय । तदुपरान्त ऐसा चिन्तन करे कि दोपहर की धूप- पीले रंग की सूर्य रश्मियाँ फैली हुई हैं। सम्पूर्ण जगत सुनहरी (स्वर्ण के समान पीले रंग वाला) हो गया है। उसमें से अत्यधिक स्फुरायमान - कोटि-कोटि स्वर्ण-रश्मियाँ किरणें बिखेरता हुआ ‘णमो आयरियाणं' पद उभर आया है। साधक इस पद के दर्शन में (देखने में) तल्लीन हो जाय। फिर यह विचारे कि आसमान बिल्कुल ही साफ है, न वहाँ सूर्य का प्रकाश है और न चन्द्र का ही प्रकाश । आसमान अपने सहज-स्वाभाविक रूप में है, उसका वर्ण हल्का नीला है। उसमें से अत्यधिक चमकीला 'णमो उवज्झायाणं' पद उभर आया है। उसकी किरणें बहुत ही सौम्य और शीतलतादायक हैं। साधक का अपना तन-मन और चेतना - सभी कुछ अनुपम शीतलता का अनुभव करने लगें। इस प्रकार शीतलता का अनुभव करता हुआ साधक इस पद के ध्यान में तन्मय और तल्लीन हो जाय । इसके बाद साधक चिन्तन करे कि अत्यधिक चमकीला 'णमो लोए सव्वसाहूणं' पद उभर रहा है। उसकी चमक बढ़ती ही जा रही है और उसके प्रभाव से सम्पूर्ण दिशा - विदिशाएँ श्यामवर्णी हो गई हैं। साधक के स्वयं के शरीर के चारों ओर काले रंग का एक अभेद्य कवच निर्मित हो गया है और वह स्वयं उस पद के ध्यान में तल्लीन है। इस प्रकार की साधना से साधक की चेतना का ऊर्ध्वारोहण और आत्मिक विकास तीव्र गति से होता है। 'नवपद' की साधना नव पद में नौ पद होते हैं, जिनमें से पाँच पद तो नवकार मंत्र के ही हैं। शेष चार पद हैं - ( 1 ) नमो नाणस्स, (2) नमो दंसणस्स, ( 3 ) नमो चरित्तस्स, ( 4 ) नमो तवस्स । किन्हीं आचार्यों ने 4 पद ये माने हैं - ( 1 ) एसो पंच णमोक्कारो (2) सव्व पावप्पणासणो, (3) मंगलाणं च सव्वेसिं, (4) पढमं हवइ मंगलं । इन नमो नाणस्स, नमो दंसणस्स, नमो चरित्तस्स, नमो तवस्स पदों की साधना का क्रम वही है, जो नवकार मंत्र के पाँच पदों का है। इनमें से प्रत्येक पद का ध्यान भी चार सोपानों में किया जाता है। विशेषता इतनी है कि इन चारों पदों का ध्यान श्वेत वर्ण में किया जाता है। * 384 अध्यात्म योग साधना

Loading...

Page Navigation
1 ... 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512