Book Title: Adhyatma Yog Sadhna
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 404
________________ यह कुण्डलिनी शक्ति प्राणमय कोश अथवा तैजस् शरीर (Etheric Body) में अवस्थित है और प्राणमय शरीर प्रकाश रूप है, अतः कुण्डलिनी शक्ति भी प्रकाश रूप है; किन्तु अत्यन्त सूक्ष्म पुद्गल परमाणुओं से निर्मित होने के कारण इस शरीर को साधारण चर्म - चक्षुओं से नहीं देखा जा सकता। इसके लिए विशिष्ट साधनों की आवश्यकता होती है। ये साधन आध्यात्मिक भी हो सकते हैं और भौतिक भी। योगी आध्यात्मिक उन्नति, हठ योग की क्रियाओं तथा भावनायोग द्वारा अपने अन्तर् में बीज रूप में उपस्थित दिव्य दृष्टि को विकसित करता है और वैज्ञानिक बाह्य साधनों द्वारा भीं प्रकाशमय प्राणमय शरीर को देख लेता है।' 1. (क) डॉ. किलनर ने प्राणमय कोष (Etheric boby) को देखने के लिए ऑरो-स्पेक (Aurospec) नाम का चश्मा (Goggles ) खोज निकाला है। इस चश्मे से दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है अर्थात् इस चश्मे द्वारा मानव किसी भी दूसरे व्यक्ति के प्राणमय शरीर को देख सकता है । परन्तु यह जो प्राणमय शरीर प्रकाशरूप दिखाई देता है सो प्रकाशात्मक कुण्डलिनी शक्ति के सारे शरीर में व्याप्त होने के कारण से दिखाई देता है। मनोमय शरीर में ऊर्मियों के उत्पन्न होने पर अन्नमय शरीर में उनकी क्रिया होने का साधन प्राणमय शरीर ही है । अर्थात् प्राणमय शरीर का प्रकाश रूप अपने अनुभव से तथा डॉ. किलनर के ऑरोस्पेक से प्रत्यक्ष होता है। - श्री कुण्डलिनी योग - शक्ति - ले. पं. श्री त्र्यम्बक भास्कर शास्त्री खरे (परमार्थ पथ, पृ. 398) (ख) ऐसी दिव्य दृष्टि प्राप्त करने की दूसरी बाह्य विधि बाहरी साधनों से मस्तिष्क के विशिष्ट अंग को उत्तेजित करना है। यह तिब्बत के लामाओं में प्रचलित है। वे लोग विशेष प्रकार की जड़ी-बूटियों तथा मंत्रों से अभिमंत्रित करने के बाद उस अभिमन्त्रित आरी जैसे दाँतेदार औजार को गर्म करते हैं और उस तपती हुई आरी से ललाट की हड्डी को काटते हैं; फिर उसके द्वारा हुए छेद में एक जड़ी-बूटियों तथा मंत्रों से पवित्र की हुई श्लाका को डाल देते हैं। वह श्लाका इतनी कुशलता से डाली जाती है कि मस्तिष्क के एक विशेष भाग से टकराकर उसे उत्तेजित कर देती है। इस प्रकार मनुष्य की तीसरी आँख बन जाती है और उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है, वह दूसरों के प्राणमय शरीर (Etheric or Electric body) को देख सकता है। ब्यौरा ऐसी घटना लोबसंग नाम के लामा के जीवन में घटी है। उसने इसका पूरा The Third Eye ‘तीसरी आँख' नामक पुस्तक में दिया है। - पूर्ण विवरण के लिए द्रष्टव्य - तीसरी आँख (रहस्यों के घेरे में, पृ. 89 ) 328 अध्यात्म योग साधना

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