________________
के और 5 मण्डल के) अथवा इनके सहित 96 दोषों से रहित आहार आदि का सेवन करना। (2) क्षेत्र से-2 कोस (4 मील अथवा 6 किलोमीटर) से आगे (अधिक दूर तक) ले जाकर आहार-पानी का सेवन न करना, (3) काल से-दिन के प्रथम प्रहर में लाया हुआ आहार उसी दिन के अन्तिम प्रहर में सेवन न करना। (4) भाव से-संयोजना आदि मण्डल दोषों से दूर रहकर आहार आदि का उपभोग करना।
(4) आदान-निक्षेपण समिति-आदान का अर्थ लेना अथवा उठाना है और निक्षेपण का अर्थ रखना है। सामान्य और विशेष दोनों प्रकार के उपकरणों को आँखों से प्रतिलेखना करके तथा प्रमार्जन करके लेना और रखना आदान-निक्षेपण समिति है।'
साधु के धार्मिक उपकरण दो प्रकार के होते हैं-(1) अवग्रहिक-सदा उपयोग में आने वाले जैसे-रजोहरण आदि और (2) प्रयोजनवश उपयोग में आने वाले। इनमें से प्रथम प्रकार के उपकरणों को सामान्य और द्वितीय प्रकार के उपकरणों को विशेष कहा जाता है। ___इस समिति का पालन भी चार प्रकार से किया जाता है। (1) द्रव्य से-भांड-उपकरण आदि यतनापूर्वक ग्रहण करे और रखे, उन्हें जोर-जोर से ऊपर से न पटके। (2) क्षेत्र से-किसी गृहस्थ के घर में रखकर अन्यत्र विहार न करे; क्योंकि ऐसा करने से उपकरणों की प्रतिलेखना नहीं हो पाती। (3) काल से-प्रातः और सन्ध्या-दोनों प्रकार के उपकरणों की विधिपूर्वक प्रतिलेखना करे। (4) भाव से-उपकरणों को अपनी धर्मयात्रा में सिर्फ सहायक माने, उन पर ममत्व और मूर्छा न करे।
(5) परिष्ठापनिका समिति-जीव-जन्तु (त्रस और स्थावर) रहित प्रासुक भूमि पर मल-मूत्र, श्लेष्म, कफ आदि का विसर्जन करना, परिष्ठापनिका या व्युत्सर्ग समिति है।
यह विसर्जन स्थंडिल भूमि में किया जाता है। स्थंडिल भूमि चार प्रकार की होती है-(1) अनापात असंलोक, (2) अनापात संलोक, (3) आपात असंलोक और (4) आपात संलोक।'
1. 2
योगशास्त्र 1/39 (क) उत्तराध्ययन 24/15 (ख) ज्ञानार्णव 18/14 उत्तराध्ययन 35/16
3.
* 160 * अध्यात्म योग साधना *