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वस्तुतः योग का ही दूसरा नाम अध्यात्म-मार्ग अथवा अध्यात्म-विद्या है। अध्यात्म-विद्या ही जैन धर्म में आध्यात्मिक योग के नाम से अभिहित हुई; और इस योग को मुक्ति-प्राप्ति का सफल उपाय बताया गया।
योग का महत्त्व इसी बात से परिलक्षित होता है कि सभी दर्शनों ने अपने नाम के साथ योग शब्द जोड़ लिया।
इसका महत्त्व एवं उपयोगिता असंदिग्ध है।
जैन योग का स्वरूप भी इसकी उपयोगिता पर आधारित है। इसी दृष्टि से अनेक प्रकार के योग आगमों में वर्णित किये गये हैं, जिनमें प्रथम मन-वचन-काय के व्यापार के अर्थ में तथा दूसरे संयम के अर्थ में 'योग' शब्द का उपयोग प्रमुख है। मन-वचन-काय के व्यापार का निरोध तथा संयम का पालन यही जैन योग का संक्षेप में स्वरूप है। इसी को विभिन्न प्रकार के योगों के नाम से कहा गया है।
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सत्य
अहिंसा
चिन्ह
Mith
Kum
परस्पर - सहयोग
* 92 * अध्यात्म योग साधना *