________________
अरविन्द का पूर्णयोग श्री अरविन्द घोष वर्तमान शताब्दी के प्रतिष्ठित योगी थे। उनके 'पूर्ण योग' का सार यह है कि मनुष्य जाति में ही भगवान को पाना और प्रगट करना है।' यही अरविन्द की दृष्टि में योग द्वारा मानव जाति की सेवा है।
इसके लिए साधक को कुछ विशेष नहीं करना है-सिर्फ उसे मौन और शान्त रहकर भगवत् प्राप्ति के लिए उत्कंठ होना, भगवान की ओर उन्मुख होना, भगवदनुकूल होना और भगवान की दया को ग्रहण करना है। भगवान ही मार्गदर्शक हैं और वे ही सब कुछ करते हैं। ___ अरविन्द के अनुसार मानव को अपने मानस (Mind) को शुद्ध और विकसित करके अतिमानस (Super mind) बनाना चाहिये जिससे वह भगवत्दया को अच्छी तरह. ग्रहण कर सके।
अरविन्द के योग और प्राचीन योगों में मूल अन्तर यह है कि प्राचीन योग तो मनुष्य की आत्मा को शुद्ध बनाकर ईश्वर में लय होने की प्रेरणा देते थे। दूसरे शब्दों में वे व्यक्तिवादी थे; जबकि अरविन्द समष्टिवादी हैं। उनका योग दिव्य. जीवन (Divine Life) का योग है। इनके पूर्णयोग के अनुसार मानवजाति विकास करके भगवद् अवतरण के प्रभाव से श्रेष्ठतर और श्रेष्ठतम बने। पूर्णयोग द्वारा मानव जाति की यही सेवा उनका लक्ष्य है।
- श्री अरविन्द का योग, इसलिये योग-मार्ग की लीक से हटकर, भगवद्-प्राप्ति-सही शब्दों में भगवद्-कृपा प्राप्ति का योग है। पूर्ण योग से उनका अभिप्राय अतिमानस (Super mind) दशा को प्राप्त करना है।
एक शब्द में कहा जाये तो अरविन्द का पूर्णयोग प्राचीन भक्तियोग का ही आधुनिकीकरण है-आधुनिक मनोविज्ञान और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में नये शब्दों में संसार के समक्ष रखा गया आध्यात्मिक योग और भक्तियोग का सम्मिश्रण है।
योग-मार्ग : पिपीलिकामार्ग और विहंगममार्ग साधना जगत् में साधक को मुक्ति प्राप्त कराने वाले दो योग मार्ग मान्य हैं-(1) पिपीलिकामार्ग और विहंगममार्ग। पिपीलिका मार्ग के उपदेष्टा हैं-वामदेव; और विहंगममार्ग का उपदेश दिया है शुकदेव ने।
श्रीमद्भागवत् के अनुसार शुकदेव जी महाज्ञानी और विरागी महापुरुष थे। अतः उन्होंने ज्ञानमार्ग का उपदेश दिया। उनके ज्ञानमार्ग का अनुसरण करने वाला साधक सांख्ययोग समाधि द्वारा हृदय कमल के रक्तदल में
* योग के विविध रूप और साधना पद्धति * 49 *