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आगे तन्त्रयोग (वाममार्ग) की साधना हठयोग के समान ही है। वाममार्ग भी यही मानता है कि सर्पिणी के आकार की शक्ति मूलाधार चक्र में सोई पड़ी है और जब साधक विभिन्न यौगिक प्रक्रियाओं द्वारा इसे जाग्रत कर देता है तो यह ऊर्ध्व दिशा की ओर गति करती हुई ब्रह्मरन्ध्र स्थित सहस्रार चक्र स्थित शिव से मिलन कर लेती है। यही साधक की सिद्धि है। __यम-नियम आदि इस सम्प्रदाय के वही हैं जो तन्त्रयोग और हठयोग के हैं। हाँ, वाममार्ग ने एक विशेष बात यह कही है कि आधी रात का समय ध्यान और जप के लिए श्रेष्ठ होता है।
तारकयोग तारकयोग का प्रचार निजानन्द सम्प्रदाय (प्रणामी धर्म) के आदि-संस्थापक श्री देवचन्द्रजी तथा प्राणनाथ ने किया है।
तारकयोग एक मन्त्रविशेष द्वारा प्राप्त ज्ञान को कहा गया है जिसमें ब्रह्मसाक्षात्कार का भेद बताया गया है। इसका मुख्य आधार प्रेम है। जहाँ तक सच्चा प्रेम उत्पन्न नहीं होता वहाँ तक तारकयोग सिद्ध नहीं होता।
इस सम्प्रदाय की मान्यता है कि सच्चे प्रेम से ही मनुष्य बन्धन-मुक्त हो जाता है।
ऋजुयोग ऋजुयोग भक्तियोग के अन्तर्गत ही है। इसमें (ऋजुयोग में) मृदुता एवं सरलता अति आवश्यक है।
ऋजुयोग के चार अंग हैं-(1) सत्संग, (2) भगवत् कथाश्रवण, (3) कीर्तन और (4) जप। ऋजुयोग की मान्यता है कि इन चारों अंगों अथवा इनमें से किसी भी एक अंग का सच्चे हृदय से पालन करने से ही निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है।
वस्तुतः ऋजुयोग सरल मार्ग है। इस पर ज्ञानी-अज्ञानी सभी चल सकते हैं, दुर्बल शरीर वालों को भी इस पथ पर चलने में कठिनाई नहीं होती। हठयोग एवं तन्त्रयोग के समान इसमें कोई जटिल यौगिक प्रक्रिया तथा विधि-विधान नहीं है।
जपयोग जपयोग एक अत्यन्त ही सरल और सिद्धिप्रद विद्या है। इसके बारे में यह उक्ति सर्वत्र प्रचलित है
- योग के विविध रूप और साधना पद्धति *41*