Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 4
________________ दो शब्द 4. मनुष्य भव हमें आत्म कल्याण करने के लिये मिला है। हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं कि हमें श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज के द्वारा बताया हुआ शुद्ध अध्यात्म का मार्ग और सत्य धर्म आत्म स्वरूप को सुनने समझने और आत्म कल्याण के मार्ग पर चलने का सुअवसर मिला । पूज्य गुरुदेव श्री जिन तारण स्वामी के सिद्धांत मनुष्य मात्र के लिये आत्म कल्याणकारी है। आत्मा ही परमात्मा है,यही साधना जीवन को सार्थक बनाने वाली है। यही अध्यात्म सिद्धांत श्री गुरू महाराज के चौदह ग्रंथों की एक-एक गाथा में प्रगट हुआ है। पूज्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज एवं श्री संघ के सभी साधक इसी साधना के मार्ग पर चलते हुए स्वयं आत्म कल्याण पथ पर अग्रसर होते हुए हम सभी के लिये भी गुरूवाणी के सिद्धांतों से परिचित करा रहे हैं। पूरी समाज और देश में प्रभावना जागरण कर रहे हैं यह हमारे लिये अत्यंत प्रसन्नता और गौरव की बात है। इस वर्ष सन् १९९९ में भोपाल में दो विशेष कार्य हुए-पहला तो यह कि श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना केन्द्र की स्थापना हुई और बहुत कम समय में ही बहुत से ग्रंथों का प्रकाशन हुआ, समाज और पूरे देश में इस साहित्य से धर्म प्रभावना हुई और अभी भी हो रही है। दूसरा विशेष कार्य-बाल ब्र. पू. बसंत जी महाराज का भोपाल में वर्षावास। यह भोपाल के लिये परम सौभाग्य और पहली बार ऐसा सौभाग्य मिला है। तीनों चैत्यालयों में समवशरण लग रहा है, अपूर्व धर्म प्रभावना और जागरण हो रहा है। वर्षावास के अवसर पर ही यह अध्यात्म चन्द्र भजन माला का प्रकाशन हुआ है। हमारी सुपुत्री श्रीमती चंद्रकांता गृहस्थ जीवन में रहते हुए साधना ज्ञान ध्यान करती रहती हैं,सम्यक्दर्शन की सीढी पाने के लिये वे निरंतर प्रयत्नशील हैं, वे हमारे लिये प्रेरणास्रोत भी हैं। उनके सहज चिंतन में जो भजन आदि लिखने में आये हैं वे आध्यात्मिक वैराग्य जगाने वाले हैं। श्री डेरिया जी का पूरा परिवार ही धर्म श्रद्धा मय हो रहा है, यह सब देखकर मेरी आत्मा गद्गद् हो रही है। श्रीमती चंद्रकांता के लिये मेरी ओर से आशीर्वाद है एवं पूरे परिवार के प्रति शुभकामना है इसी प्रकार सभी जीव आत्म कल्याण के मार्ग पर चलते रहें। भोपाल श्रीमती मेवाबाई दिनांक - २६.८.९९ ason रक्षाबंधन पर्व) [51 PACHAR अंतर्भावना " आज मानव भौतिकता की चकाचौंध से प्रभावित होकर भौतिक २ पदार्थों के संग्रह में इतना व्यस्त है कि अपने हित-अहित का विचार भीर नहीं कर पा रहा है। यह यथार्थ सत्य है कि आदमी कितना ही भौतिक संसार में भाग-दौड़ कर ले किन्तु आत्म शांति की प्राप्ति बाह्य वैभव, भौतिक वस्तुओं से कभी भी नहीं होगी.यह मात्र मृगतृष्णा भर है जिसका परिणाम अंत में दुःख ही मिलता है। आत्म कल्याण और आत्मशांति का मार्ग एक मात्र अध्यात्म, अपने आत्म स्वरूप की श्रद्धा साधना आराधना से ही बनता है, यही मनुष्य जीवन को सफल करने का मार्ग है। ___ मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि मेरी बड़ी बहिन श्रीमती चंद्रकांता जी धर्मपनि श्री प्रेमचंद जी डेरिया गंजबासौदा, वर्षों से धर्म आराधना में संलग्न हैं। घर परिवार के बीच रहते हुए उनकी विचारधारा, सहजता, सरलता, सहिष्णुता देखकर उनके प्रति श्रद्धा से हृदय भर जाता है। धार्मिक क्षेत्र में उनसे मुझे बहुत ही प्रेरणा मिली है। पारिवारिक व्यस्तताओं में से भी अपने लिये समय निकाल कर वे धर्म आराधना कर अपने जीवन को तो धर्ममय बना ही रही हैं, हमारे पूरे परिवार के लिये प्रेरणा स्रोत भी हैं। उनकी सहज धर्म साधना के अंतर्गत उन्होंने अनेकों भजन, मुक्तक व अन्य रचनायें लिखी हैं। सन् १९९१ में उनके भजनों की लघु पुस्तिका 'चंद्रभाव भजनमाला' प्रकाशित हुई थी और इस वर्ष सन् १९९९ में अध्यात्म रत्न बाल ब्र.पू. श्री बसन्त जी महाराज के भोपाल वर्षावास के मंगलमय सुअवसर पर प्रस्तुत 'अध्यात्मचंद्र भजन माला' का प्रकाशन श्री डेरिया जी की ओर से हुआ है। श्रीमती चंद्रकांताजी ने ज्ञान और अनुभूतियों को शब्दों में पिरोकर अंतर में जो ज्ञानधारा वही है उसको ही भजन आदि के रूप में प्रस्तुत किया है। भजनों की भाषा बहुत ही सरल सहज एवं अंतरात्मा को छू लेने वाली है। उनके भजन सुनकर हृदय प्रफुल्लित हो जाता है। हमारा महान सौभाग्य है कि आत्म निष्ठ साधक पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज, अध्यात्म रत्न बाल ब्र.पू. बसन्त जी महाराज का मार्गदर्शन आत्म कल्याण हेतु हमें मिलता है तथा श्री संघ के सान्निध्य में आत्मबल बढ़ता है। हम सभी जीव, संतों के बताये मार्ग पर चलकर अपना आत्मकल्याण करें, ऐसी पवित्र भावना है। भोपाल - प!षण पर्व श्रीमती रिषभकांता तारण B दिनांक २०.९.१९९९ [6]

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