Book Title: Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva Author(s): Shaivya Jha Publisher: Anupam Prakashan View full book textPage 8
________________ ( ६ ) नामों से 'कमल-अमल, अरविन्द - मिलिन्द आदि अनोखे अनोखे उपनामों की लांगूल लगानेवाले छायावादी कवियों को 'कवित्वहन्ता' छोकड़ा कहा था । द्विवेदीजी की दृष्टि में काव्यगत उत्कर्ष - अपकर्ष की परीक्षा के लिए एक ही अचूक निकष है— सत्य । जिस प्रकार व्यक्ति का चरित्र इस बात से जाना जाता है कि वह सत्य का कितना प्रेमी है, उसी प्रकार काव्य की श्रेष्ठता इस बात से द्योतित होती है कि उसमें सत्य की मात्रा कितनी है । 'रसज्ञ रंजन' के एक अविस्मरणीय स्थल पर द्विवेदीजी ने कहा है कि चूँकि बिना असलियत के जोश का होना बहुत कठिन है, इसलिए कवि को असलियत का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए । द्विवेदीजी के कथनानुसार 'अच्छी कविता की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि उसे सुनते ही लोग बोल उठें कि सच कहा । वही कवि सच्चे कवि है, जिनकी कविता सुनकर लोगों के मुँह से सहसा यह उक्ति निकलती है । ऐसे कवि धन्य हैं; और जिस देश में ऐसे कवि पैदा होते हैं, वह देश भी धन्य है । ऐसे कवियों की कविता चिरकाल तक जीवित रहती है ।" सत्य के ऐसे ही अनन्य उपासक एवं हिन्दी - आलोचना के जनक पर लिखा गया यह शोधग्रन्थ कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । शोधकर्ती ने द्विवेदीजी के मूल ग्रन्थों का सूक्ष्म विश्लेषण तो किया ही है, उन ग्रन्थों पर लिखे गए निबन्धों और आलोचनाओं से भी प्रभूत प्रेरणा ग्रहण की है, उनमें उपस्थित विचारों का खंडन-मंडन किया है। और इस प्रकार एक ऐसे मौलिक ग्रन्थ की रचना की है, जो वैदुष्यपूर्ण तो है ही, 'असलियत' तथा गम्भीर शोधपरक भावों से भरपूर है । मेरी दृष्टि में प्रस्तुत ग्रन्थ द्विवेदीजी के सम्पूर्ण साहित्यिक पहलुओं पर लिखा गया एक सर्वांगपूर्ण अध्ययन है, जिसकी भाषा प्रांजल और विषय-वस्तु का विश्लेषण एवं प्रस्तुतीकरण बहुत मनोहारी है । इसके लिए लेखिका और प्रकाशक, दोनों ही बधाई के पात्र हैं । अँगरेजी-विभाग, भागलपुर विश्वविद्यालय १५. ६. १९७७ १. रसज्ञ -रंजन (१९४९), पृ० ६१ । रामचन्द्र प्रसाद यूनिवर्सिटी प्रोफेसर और अध्यक्षPage Navigation
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