Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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38. यथा वाणी तथा क्रिया करणसच्चेवट्टमाणोजीवोजहावाई तहाकारीयाविभवइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 372]
- उत्तराध्ययन 29/33 करण सत्य – (कार्य की सचाई) व्यवहार में स्पष्ट रहनेवाली आत्मा 'जैसी कथनी वैसी करनी' का आदर्श प्राप्त करती है। 39. लाभ, लोभ जहा लाभो तहा लोभो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 387]
- उत्तराध्ययन 847 ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों – त्यों लोभ होता है । 40. लाभ से लोभ लाभा लोभो पवड्ढई।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 387] .
- उत्तराध्ययन 847 लाभ से लोभ बढ़ता जाता है। 41. निःस्नेह विजहित्तु पुव्व संजोगं, न सिणेहं कर्हिचि कुव्वेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 388]
- उत्तराध्ययन 82 साधक पूर्व संयोगों को छोड़ देने पर फिर किसी भी वस्तु में स्नेह न करें। 42. स्नेह में निःस्नेह असिणेह सिणेह करेहि।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 388] __ - उत्तराध्ययन 82 जो तुम्हारे प्रति स्नेह करे, उनसे भी तुम नि:स्नेहभाव से रहो । . अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 66