Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 973] - निशीथ भाष्य 4159
बृहदावश्यक भाष्य 5281 ज्ञानादि मोक्ष के साधन हैं और ज्ञान आदि का साधन देह है, देह का साधन आहार है। अत: साधक को समयानुकूल आहार की आज्ञा दी गई है। 221. निष्पक्ष भिक्षाचरी
समुदाणं चरे भिक्खू, कुलमुच्चावयं सया । नीयं कुलमइक्कम्मं, ऊसढं नाभिधारए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 980]
- दशवकालिक 5225 साधु सदा धनवान् और गरीब घरों की (समुदान) भिक्षा करें । वह निर्धन कुल का घर समझ कर, उसे लाँघकर धनवान् के घर न जाए। 222. पंडित-अखिन्न . न विसीएज्ज पंडिए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 981] .
- दशवैकालिक 5226 पण्डित जन किसी भी स्थिति में विषाद न करें। .. 223. आत्मविद् साधक अदीणो वित्ति मेसेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 981]
- दशवैकालिक 5226 आत्मविद् साधक अदीन भाव से जीवन-यात्रा करता रहे। किसी भी स्थिति में मन में खिन्नता न आने दे । 224. अदाता पर अकुपित अदेंतस्स न कुप्पेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 981] - दशवकालिक 5228
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 111