Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text
________________
282. निर्मल चित्त ण इमं चित्त समादाय, भुज्जो लोयंसि जायति ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1184]
- दशाश्रुतस्कंध 52 निर्मल चित्तवाला साधक संसार में पुन: जन्म नहीं लेता। 283. देवाधिदेव वीतराग ।
प्रशमरस निमग्नं दृष्टि युग्मं प्रसन्नं, वदन कमलमङ्क कामिनी संग शून्यः । कर युगमपि यत्ते शस्त्र सम्बन्ध वन्ध्यं, तदसि जगति देवो वीतरागस्त्वमेव ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1209]
- श्री पर्वकथा संचय पृ. 149 जिनके नयन प्रशमरस निमग्न हैं। जिनकी आँखों में कामक्रोधादि नहीं हैं, अत: जो प्रसन्न दृष्टि हैं । जिनका वदन कमल और अंक कामिनी के संग से रहित है अर्थात् जिन्होंने कन्दर्प के दर्प का दलन कर दिया है। जिनके दोनों हाथ शस्त्र से रहित है। जो अभय है और अभय के दाता है, ऐसे देव इस दुनिया में एक वीतराग ही हैं । 284. आत्म-कर्म
जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति, नो अचेयकडा कम्मा कज्जति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1336]
- भगवतीसूत्र 16/207 (1) आत्माओं के कर्म चेतनाकृत होते हैं, अचेतनाकृत नहीं । 285. जीवात्मा-आधार जीवाहारो भण्णइ आयारो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1343]
- दशवकालिक नियुक्ति 215 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 125