Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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178. मोक्ष-साधना
दोसा जेण निरंभं,-ति जेण खिज्जंति पुव्व कम्माइं। सेसो मोक्खोवाओ, रोगावत्थासु समणं वा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 903] ___ एवं [भाग 7 पृ. 947] - निशीथ भाष्य 5250
- बृहदावश्यक भाष्य 3331 जिस किसी भी अनुष्ठान से रागादि दोषों का निरोध होता हो तथा पूर्व संचित कर्म क्षीण होते हों, वे सब अनुष्ठान मोक्ष के साधक हैं। जैसेकि रोग को शमन करनेवाला प्रत्येक अनुष्ठान चिकित्सा के रूप में आरोग्यप्रद
है।
179. गुणनाशक
चउहि ठाणेहिं संते गुणे नासेज्जा । तं जहा-कोधेणं, पडिनिवेसेणं, अकयण्णुताए मिच्छत्ताहि निवेसेणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 906]
- स्थानांग 4/4/4/370 क्रोध, ईर्ष्या-डाह, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह - इन चार दुर्गुणों के कारण मनुष्य के विद्यमान गुण भी नष्ट हो जाते हैं। 180. दुर्जन दुष्टता शाठ्यं (जाड्यं) हीमती गण्यते व्रतरुचौ दम्भः शुचौ कैतवम्। शूरे निघृणता मुनौ (ऋलौ) विमतिता दैन्यं प्रियाभाषिणि ॥ तेजस्विन्यवलिप्तता मुखरता वक्तर्यशक्तिः स्थिरे। तत्को नाम गुणो भवेत् स विदुषां (गुणिनां) यो दुर्जनैर्नाङ्कितः ?॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 907] - नीतिशतक 54
. अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 100