Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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दूसरे तीर्थंकर से लगाकर तेइसवें तीर्थंकर के शासनकाल तक की जनता ऋजु – सरल और प्राज्ञ - बुद्धिशालिनी थी। 196. एक ऐतिहासिक सत्य पुरिमा उज्जु जडाउ वक्क जडाय पच्छिमा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 961]
- उत्तराध्ययन 23/26 प्रथम तीर्थंकर के युग में जनता सरल और जड़ थी, जबकि अन्तिम तीर्थंकर के युग में जनता वक्र और जड़ है। 197. धर्म प्रतीक पच्चयत्थं च लोगस्स नाणविहविगप्पणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 962]
- उत्तराध्ययन 23/32 धर्मों के वेष आदि के नाना विकल्प जनसाधारण के परिचयपहचान के लिए है। 198. मन के जीते जीत
एगे जिए जिया पंच, पंचे जिए जिया दस । दसहा उ जिणि ताणं, सव्वसत्तू जिणामिहं ॥?
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 962]
- उत्तराध्ययन 23/36 एक मन को जीत लेने पर पाँचों इन्द्रियों पर विजय हो सकती है और पाँचों इन्द्रियों पर विजय कर लेने के बाद पाँचों प्रमाद और पाँचों अव्रतों पर (दसों पर) विजय पा सकते हैं और इन दसों पर विजय पा लेने के पश्चात् अपने अन्तर की दुनिया के तमाम शत्रुओं पर विजय हो जाती है। 199. विज्ञान और धर्म विन्नाणेणं समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 962]
- उत्तराध्ययन 2331 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 105