Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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जरा और मरण के महाप्रवाह में डूबते प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है । प्रतिष्ठा/आधार है, गति है और उत्तम शरण है। 209. नौका
जा उ अस्साविणी नावा, न सा पारस्सगामिणी । जा गिरस्साविणी नावा, सा तु पारस्सगामिणी ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 965]
- उत्तराध्ययन 2341 छिद्रोंवाली नौका पार नहीं पहुँच सकती, किन्तु जिस नौका में छिद्र नहीं है; वही पार पहुँच सकती है। 210. नाविक और नौका
सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ । संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 965]
- उत्तराध्ययन 23/03 शरीर को नौका, जीव को नाविक और संसार को समुद्र कहा गया है। महर्षि इस देहरूप नौका के द्वारा संसार-सागर को तैर जाते हैं। . 211. दुरारोह ध्रुवस्थान
अस्थि एगं धुवं ठाणं लोगग्गम्मि दुरारूहं । जत्थ नत्थि जरा मच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 965]
- उत्तराध्ययन 23/81 लोक के अग्र भाग पर एक ध्रुव स्थान है, जहाँ बुढ़ापा, मृत्यु, व्याधि तथा वेदना नहीं है, किन्तु वह स्थान दुरारूह है अर्थात् उस स्थान तक पहुंचना बड़ा कठिन है। 212. धर्मद्वीप धम्मो दीवो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 965] ( अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 108 )