Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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धर्मरत्नप्रकरण 1 अधि. पू. 40
महान्-ज्ञानादि गुणों से सम्पन्न व धर्म से युक्त मानवता सर्वोत्तम
मानी गयी है।
185. लक्ष्मी निवास
गुरवो यत्र पूज्यन्ते, यत्र धान्यं सुसंस्कृतम् । अदन्त कलहो यत्र तत्र शक्र ! वसाम्यहम् ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 936 ] सूत्रकृतांगसूत्र सटीक 1/3/2
इन्द्र के प्रति लक्ष्मी की उक्ति है - जहाँ गुरुजनों की पूजा होती है, जहाँ पर धान्य सुसंस्कृत होता है और जहाँ पर दूधमुँहे बच्चे खेलते-कूदते हो अर्थात् जहाँ दन्तकलह नहीं होता है; वहाँ पर मैं निवास करती हूँ । 186. ज्ञानार्थी शिष्य
चित्तण्णु अनुकूलो, सीसो सम्मं सुयं लहइ ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 936] विशेषावश्यक भाष्य 937
गुरु के चित्त (अभिप्राय) को समझकर उनके अनुकूल चलनेवाला शिष्य सम्यक् प्रकार से ज्ञान प्राप्त करता है ।
187. धन्य अन्तेवासी !
णाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरित्ते य । धन्ना आवकहाए, गुरु कुलवासं ण मुंचति ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 938-940] धर्मबिन्दु 5/3 (1)
एवं धर्मसंग्रह 5/3 [154] पृ. 300
जो शिष्य मृत्यु पर्यन्त गुरु के साथ रहते हैं, वे धन्य पुरुष ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा दर्शन व चारित्र में भी पूर्णतः स्थिर होते हैं । 188. पूजा - भक्ति
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लज्जा दया संजम बंभचेरं, कल्लाण भागिस्स विसोहि ठाणं ।
अभिधान राजेन्द्र - कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 102