Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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92. तिन्नाणं- तारयाणं
ज्ञानी क्रिया परः शान्तो, भावितात्मा जितेन्द्रियः । स्वयं तीर्णो भवाम्बोधेः, पराँस्तारयितुं क्षमः ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 551]
ज्ञानसार 9
सम्यग्ज्ञानी, शुद्ध क्रिया में तत्पर, शांत, भव्यात्मा, जितेन्द्रिय महात्मा इस भव संसार से स्वयं पार उतरते हैं और अन्य भव्य आत्माओं को भी पार लगाने में समर्थ होते हैं ।
93. थोथा ज्ञान निरर्थक
क्रिया विरहितं हन्त ! ज्ञान मात्र मनर्थकम् । गर्ति बिना पथज्ञोऽपि नाप्नोति पुरमीप्सितम् ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 551] ज्ञानसार 9/2
क्रियारहित ज्ञान निरर्थक है । पथ का ज्ञाता भी गमन क्रिया के
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बिना इच्छित नगर में नहीं पहुँच सकता ।
94. क्रिया की उपादेयता
गुणवृद्धयै ततः कुर्यात् क्रियामस्खलनाय वा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 552]
ज्ञानसार 9/7
गुण की वृद्धि हेतु और उसमें स्खलन न हो जाये, इसलिए क्रिया
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करना चाहिए ।
95. क्रिया योग
तपः स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानि क्रिया योगः ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 553] पातंजल योगदर्शन 21
तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान (निष्काम भाव से ईश्वर की भक्ति, तल्लीनता) यह तीन प्रकार का क्रियायोग है अर्थात् कर्मप्रधान योग साधना है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3• 79
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