Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- सूत्रकृतांग 1AL प्रत्येक प्राणी अपने ही कृत-कर्मों से दुःख पाता है। 113. व्यर्थ क्या ?
लवण विहुणा य रसा, चक्खुविहुणा य इंदियग्गामा। धम्मोदयाए रहिओ, सोक्खं संतोसरहियं तो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 610]
- सत्रकृतांग सूत्र सटीक । श्रत. 7 अध्ययन बिना नमक का भोजन, नयन बिना का चक्षुरिन्द्रिय का विषय, दया बिना का धर्म और सन्तोष बिना का सुख किस काम का ? 114. संसार-ज्वर एगंत दुक्खे जरि ते व लोए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 610]
- सूत्रकृतांग 1Al यह संसार ज्वर के समान एकान्त दु:ख रूप है। 115. मृत्यु-विभीषिका
गब्भाइ मिजंति बुयाऽबुयाणा, पारा परे पंचसिहा कुमारा । जुवाणगा मज्झिम-थेरगा य, चयंति ते आउक्खए पलीणा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 610]
- सूत्रकृतांग 1000 कितने ही प्राणी गर्भावस्था में, कितने ही दूध पीते शिशु अवस्था में, तो कितने ही पंचशिख कुमारों की अवस्था में मर जाते हैं। फिर कितने ही युवा होकर तो कई प्रौढ़ होकर और कई वृद्ध होकर चल बसे हैं । इसप्रकार आयुष्य क्षय होते ही मनुष्य अपनी देह छोड़ देते हैं। 116. देह-त्याग
चयंति ते आउक्खए पलीणा । ( अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 84 )