Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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जो मोहदर्शी होता है वह गर्भदर्शी होता है और जो गर्भदर्शी होता है वह जन्मदर्शी होता है (जो मोहनीय कर्म के विवश होकर के सब जगह मोहित होता है, वह गर्भ-जन्म को देखता है और जो गर्भदर्शी होता है; वही संसार में जन्म लेता है)। 165. स्तुति-फल चउवीसत्थएणं दंसणविसोहिं जणयइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 849]
- उत्तराध्ययन 291 चौवीस तीर्थंकरों की स्तुति करने से आत्मा सम्यग्दर्शन की विशुद्धि
करता है।
166. दुविनीत
पुरिसम्मि दुन्विणीए, विणय विहाणं न किंचि आइक्खे। नवि दिज्जइ आभरणं, पलियत्तियकन्न हत्थस्स ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 855]
- निशीथ भाष्य 6221 जो व्यक्ति दुर्विनीत है, उसे सदाचार की शिक्षा नहीं देना चाहिए। भला जिसके हाथ-पैर कटे हुए हैं, उसे कंकण और कुण्डलादि अलंकार क्या दिए ज़ायँ ? 167. ज्ञानमद
मद्दवकरणं नाणं तेणेव उजे मदं समुवहति । ऊणग भायण सरिसा, अगदो वि विसायते तेसिं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 855] - निशीथ भाष्य 6222
- बृहदावश्यक भाष्य 783 ज्ञान मानव को मृदु बनाता है, किंतु कुछ मनुष्य उससे भी मदोद्धत होकर 'अधजलगगरी' की भाँति छलकने लग जाते हैं, उन्हें अमृत स्वरूप औषधि भी विष बन जाती है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 96