Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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73. विकथा
जो संजओ पत्तो, रागद्दोसवसगओ परिकes | साउ विकहा पवयणे, पणत्ता धीर पुरिसेहिं ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 402] दशवैकालिक नियुक्ति 211
जो संयमी होते हुए भी प्रमत्त है, और राग-द्वेष के वशवर्ती होकर, जो राजभक्तादि कथा करता है, उसे जिनशासन में 'विकथा' कहा गया है । 74. कथा
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तव संजम गुणधारी, जं चरण रया कर्हिति सब्भावं । सव्वं जग जीवहियं सा उ कहा देसिया समए ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 402 ] दशवैकालिक नियुक्ति 210
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तप - संयम आदि गुणों से युक्त मुनि सद्भावपूर्वक सर्व जगजीवों के हित के लिए जो कथन करते हैं; उसे 'कथा' कहा गया है।
75. ध्यान
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चित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 407 ] आवश्यक नियुक्ति 5/1477
किसी एक विषय पर चित्त को स्थिर - एकाग्र करना ध्यान है ।
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76. प्रायश्चित्त
पावं छिंदइ जम्हा पायच्छितंति भण्णइ तेणं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 413] एवं [भाग 5 पृ. 129-135]
पंचाशक सटीक विवरण 16/3
जिसके द्वारा पाप का छेदन होता है, उसे 'प्रायश्चित्त' कहते हैं ।
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77. धर्म-मूल
वियमूलो धम्मोति ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 74