Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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सभी मनुष्य अपने पूर्वकृत कमों के अनुसार फल पाते हैं । अपराध और गुणों में दूसरे लोग तो मात्र निमित्त बनते हैं। 36. स्वल्प सुख भी नहीं
दुःखं स्त्री कुक्षि मध्ये प्रथमिह भवे गर्भवासे नराणाम्, बालत्वे चापि दुःखं मलललित तनुस्त्रीपयः पानमिश्रम् । तारूण्ये चापि दुःखं भवति विरहजं वृद्धभावोऽप्यसारः, संसारेरेमनुष्याः!वदतयदिसुखंस्वल्पमप्यस्ति किञ्चिद् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342]
एवं [भाग 4 पृ. 2549] - आगमीय सूक्तावलि पृ. 25
- धर्मरत्नप्रकरण सटीक - इस संसार में पहले तो गर्भावास में ही मनुष्यों को जननी की कुक्षि में दु:ख प्राप्त होता है। उसके बाद बाल्यावस्था में भी मलपरिपूर्ण शरीर स्त्री के स्तनपय: (दूध) पान से मिश्रित दु:ख होता है और युवावस्था में भी विरह आदि से दुःख उत्पन्न होता है तथा वृद्धावस्था तो बिल्कुल नि:सार यानी कफ-वात-पित्तादि के दोषों से भरी हुई है। इसलिए हे मनुष्यों ! यदि संसार में थोड़ा भी सुख का लेश हो तो बताओ ? 37. कृतज्ञता
प्रथम वयसि पीतं तोयमल्पं स्मरन्तः, शिरसि निहित भारा नारिकेरा नराणाम् । उदकममृतकल्पं दधुराजीवितान्तं, नहि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 354]
- धर्मसंग्रह सटीक 1 अधिकार नारियल के छोटे पौधे को मनुष्य जल से सींचते हैं। अपनी प्रथम अवस्था में पीये गये उस थोड़े से जल को याद रखते हुए वे नारियल के वृक्ष अपने सिर पर सदा जल का भार उठाये रखते हैं और जीवन पर्यन्त मनुष्यों को अमृत के तुल्य स्वादिष्ट जल देते रहते हैं। सच है, साधुजन किसी के किए हुए उपकार को कभी भूलते नहीं है।
___ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 65