Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

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Page 9
________________ लिखित अनेक नियुक्तियों में "आवश्यक नियुक्ति” भी बृहदाकार रूप में . प्रकाशित है। साथ ही मूलाचार के अन्तर्गत प्रस्तुत आवश्यक नियुक्ति से उसकी अनेक गाथायें समान और कुछ कम–वेशी रूप में समान मिलती-जुलती हैं। इस अद्भुत समानता के आधार पर उस परम्परा के कुछ सम्मानित विद्वान् इसे अर्धमागधी आवश्यक नियुक्ति से संगृहीत कह देते हैं। तथ्य यह है कि तीर्थकर महावीर की निर्ग्रन्थ परम्परा जब दो भागों में विभक्त हुई, तब परम्परा-भेद के पूर्व का समागत श्रुतागम दोनों परम्पराओं के आचार्यों को कंठस्थ था। इसलिए उन्होंने सर्वमान्य प्रचलित गाथाओं आदि का अपने-अपने अभीष्ट विषय-विवेचन के प्रसंग में उनका यथास्थान उपयोग किया। अतः इस सन्दर्भ में आदान-प्रदान या संग्रह की बात करना आग्रह मात्र ही कहा जायेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ की सिद्धि हेतु हमें वर्तमान के अनेक पूज्यनीय आचार्यों, साधुओं और विद्वानों का मंगल-आशीष और प्रोत्साहन मिला है, और इन्हीं सबके आशीष की फलश्रुति प्रस्तुत ग्रन्थ है। इसके प्रकाशन में हमें परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी की परम्परा के वर्तमान पट्टधर आचार्यरत्न पूज्यश्री 108 वर्धमानसागर जी महाराज (ससंघ) का इस ग्रंथ के विषय में आरम्भ में मंगल-कलश शीर्षक से विद्वत्तापूर्ण चिन्तन के साथ ही सभी तरह का जो सहज सम्बल और प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है, उन कृतज्ञ भावों को कितने ही श्रेष्ठ शब्दों में व्यक्त करें, कम ही रहेगा। हम इस हेतु उन्हें ससंघ सविनय नमोस्तु निवेदित करते हैं। इस ग्रन्थ के अच्छे से अच्छा सम्पादन, अनुवाद, प्रस्तावना एवं परिशिष्ट में छह आवश्यकों का तुलनात्मक विवेचन मेरे पूज्य पिताश्री प्रो० फूलचन्द्र जैन प्रेमी ने जो श्रम किया है वह मूल्यांकन हेतु आप सभी के समक्ष है। मुझे भी इन सब कार्यों में सहयोग करके जिनवाणी की सेवा का जो सुअवसर प्राप्त हुआ उसके लिये अपने जीवन के इन क्षणों को धन्य मानता हूँ। इसमें किसी भी विज्ञ पाठक को कोई कमी या त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो कृपया सूचित करेंगे, ताकि आगे उसका परिमार्जन किया जा सके। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में निमित्त बने पुण्यार्जक परिवार के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते है। श्रुतपंचमी-2009 डॉ० अनेकान्त कुमार जैन मानद सचिव, जिन फाउन्डेशन, नई दिल्ली-74 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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