Book Title: Aao Jeena Sikhe
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 7
________________ आभार आँखों के सामने न जाने कितने चेहरे आ रहे हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मुझे पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी है और न जाने कितने ऐसे हाथ हैं जो मददगार बने हैं। कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं, जिन्होंने इस पुस्तक प्रकाशन को साकार करने में मुझसे ज्यादा मेहनत की है। हर एक का नाम लिखना संभव नहीं है। सबसे पहले मैं उन बच्चों का आभार मानती हूँ जिनका मैंने शिविर लिया है। हरेक शिविर में बच्चों में उत्साह देखा, लगन देखी, कुछ सीखने की ललक देखी थी। शिविर होने के बाद बच्चे एक ही प्रश्न पूछते थे - "आपकी कोई पुस्तक है?" इसी प्रश्न ने पुस्तक लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया है। मेरी माँ से तो मुझे हमेशा ही लिखने की प्रेरणा मिली है। मेरी हिन्दी शुद्ध नहीं है। हिन्दी के शुद्धिकरण के लिए मुझे हमेशा ही मेरे पति का साथ मिलता है। उनके अनन्य योगदान के लिए आभार मानना मात्र उपचार होगा। गुजरात में हिन्दी का टाइपिंग करना एक मुश्किल काम है। श्री गणपत भंसाली को जैसे ही याद करो, कार्य सुलभ बन जाता है। उन्होंने श्री मुर्तजा का नाम दिया और काम सरल हो गया। मेहनत और अपनी क्षमता के माध्यम से मुर्तजा ने मेरी कल्पना को साकार किया। हिन्दी में मेरी यह प्रथम पुस्तक, पुफ रीडिंग भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य होता है। श्री गोविंदभाई जोशी को एक बार पूछते ही उन्होंने उस्फूर्त और सहज भाव से यह काम किया। मैं उनका भी आभार व्यक्त करती हूँ। नवसारी में मैंने भक्ताश्रम, संस्कार भारती और डी.डी. गर्ल्स स्कूलों में काफी काम किया। वहां के श्री महादेवभाई देसाई, जो बच्चे किताबें पढ़ें इसके लिए हमेशा नए नए प्रयोग करते हैं। उन्होंने संस्कार भारती स्कूल में मुझे योगशिक्षक के रूप में काम करने की प्रेरणा दी थी और उस समय मैं बहुत कुछ सीख पाई। संस्कार भारती स्कूल की आचार्या माधवीबेन कर्वे, जो हमेशा ही मुझे मदद करती थी। इस स्कूल में मैंने काफी कार्यक्रम किए। इन सबकी मैं आभारी हूँ। पुस्तक का मुखपृष्ठ बनाना एक महत्त्वपूर्ण काम है। सोनिया कांबले जैसी कलाकार मुझे मिली। मेरी भावनाओं को कला के रूप में उसने प्रेषित किया। बचकानीवाला स्कूल की आचार्या और ड्राइंग टीचर मयूरभाई जिन्होंने बच्चों को प्रेरणा देकर मुझे चित्र बनाकर दिए। इन सबकी मैं आभारी हूँ। बच्चे हों या बूढ़े, नर हों या नारी, सबको लगती है कहानी प्यारी। बच्चों की किताब लिखते समय अच्छे विचार और कहानियाँ लिखने का मैंने निश्चय ही किया था। श्री रतनचंद जैन लिखित प्रेरक-पसंग और सूक्तियां जैसी अनमोल किताबें पढ़ने के लिए मिली इसके लिए मैं जयश्री की आभारी हूँ। इस किताब का मुझे काफी सहयोग मिला । मैं इनको भी धन्यवाद देती हूँ। अहमदनगर (महाराष्ट्र) में भूषण देशमुख, अंभोरे, विलास गीते, सदानंद भंणगे और सभी मित्र मुझे हमेशा प्रेरणा देते हैं। मदद करने के लिए भी हमेशा तत्पर रहते हैं। उनकी भी मैं आभारी हूँ। 'बच्चों का देश' मोहनभाई जैन का उत्साह हमेशा सामने आता है, तो मैं नतमस्तक होती हूँ। उनका संपूर्ण परिवार जो कार्यरत है, मैं उनके साथ जुड़ कर उनमें से ही एक हूँ ऐसा महसूस करती हूँ। संचय जैन और महादेवभाई के सुझाव किताब लिखते समय काफी उपयुक्त रहे। उन्हें भी मैं अंतःकरणपूर्वक धन्यवाद देती हूँ। कनक बरमेचा, पूनम गुजरानी, रजनी जैन, श्री और सौ. सराफ, बालुभाई, भरतभाई और हमारे अणुव्रत, जीवन विज्ञान की पूरी टीम हर तरह की मदद के लिए तत्पर रहती है। इन सबका मैं अंतर्मन से आभार व्यक्त करती हूँ। इस किताब को लिखने से पहले मैंने काफी किताबें पढ़ी थीं। जो भी बातें अच्छी लगती, बच्चों को देने के लिए मैं नोट करती थी. पर अन्जाने में या बदकिस्मती से कई बार लिखी हुई सूक्तियां, कहानियां जिनकी हैं उनका नाम लिखना मैं भूल गई थी। इन सबका मैं आभार प्रकट करना चाहती हूँ। इन स्रोतों की जानकारी न होने के कारण नाम नहीं लिख सकती इसका मुझे अफसोस भी है। इसलिए सारे ज्ञात-अज्ञात की मैं आभारी हूँ। पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की किताबों से मैंने बहुत कुछ सीखा है, बहुत कुछ पाया है। उनका आशीर्वाद हमेशा ही मुझे मिला है। उनके प्रति मैं नतमस्तक हूँ। साध्वी कनकनी से भी हमेशा विशेष प्रेरणा मिलती है। उनके प्रति भी मैं नतमस्तक हूँ। सबके लिए मैं कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। - अलका सांखला

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