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आओ जीना सीखें...
सफलता 44
आज का युग निर्माणों का युग है। आज के युग में नए-नए निर्माण हो रहे हैं। नित नए शोध हो रहे हैं, नई टेक्निक आ रही हैं। कम्प्युटर और इंटरनेट की इस दुनिया में आप को क्या नहीं प्राप्त होता ?
इस युग में बदलाव आया, जिस तेजी से यह बदल रहा है, उतनी ही तेजी से मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। इसे संतुलित करने के लिए अपने आपको जानने के लिए और मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए हर एक को अणुव्रती बनना आवश्यक हैं। छोटे-छोटे संकल्पों से बहुत परिवर्तन आता है।
अणुबम वैज्ञानिक खोज है। छोटा सा अणुबम न जाने कितने जीवन ध्वस्त करता है, अशांति फैलाता है। इसका जवाब में अध्यात्म की खोज 'अणुव्रत' है जो निर्माणों की प्रक्रिया, शांति और चरित्रनिर्माण का बीज है। अणुबम हिंसक प्रवृत्ति है तो अणुव्रत अहिंसक प्रगति का प्रथम सोपान है।
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निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण
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भूले....
वर्तमान युग की सबसे बड़ी समस्या
यह है कि मनुष्य सब
कुठ बनना चाहता है, पर मनुष्य बनने की बात नहीं सोचता।
नित नई योजनाओं का निर्माण होता है, पर चरित्र निर्माण की योजना बनाने का समय नहीं । चरित्र निर्माण बुनियादी काम है। - गुरुदेव तुलसी
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आओ जीना सीखें...
सफलता 45
अणुव्रत सुख-शांति का राजमार्ग है। यह मानव धर्म है। मानव जीवन की सार्थकता है । यह आत्म नियंत्रण है, संयम है। संयमः खलु जीवनम् संयम ही जीवन है। संयम नहीं तो संघर्ष होगा, इसलिए अणुव्रतों को स्वीकार करो। यही विविध समस्याओं का समाधान है।
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इस पुस्तक का उद्देश्य एक ही है आपको ऐसी बातें बताई जाए जिन्हें प्रारंभ से ही जानोगे तो संपूर्ण जीवन सुखमय बनेगा। अणुव्रत मनुष्य के चरित्र का निर्माण करके सत्पुरुष बनाता है, हृदय परिवर्तन करता है। दृष्टि बदलती है तो सारी सृष्टि ही बदल जाती है।
जो क्षण चला गया वह लौट कर नहीं आता। इसलिए सावधान ! इसी क्षण को समझो और संकल्प करो। आज चारों तरफ संकट मंडरा रहा है। अणुव्रत सुरक्षा कवच है। विज्ञान और अध्यात्म का अद्भुत संयोग है। विज्ञान ने दी है, जीवन को ऊंचाई । अणुव्रत देगा, जीवन को गहराई । अणुव्रत का बीज बोओ, नैतिकता के फल पाओ ।
चारों ओर है हिंसा का डंका, हिंसा पैदा करती है आँधी । अणुव्रतों को स्वीकार कर
हमें बनना है गांधी ।
आज का युग समस्याओं का युग है। एकांगी जीवन समस्या बढ़ाता है। कोरा वैज्ञानिक होना अथवा कोरा आध्यात्मिक होना हमारी समस्याओं को बढ़ावा देता है । हमारी शिक्षा भी अधूरी है। जिसकी पूर्ति होगी अणुव्रतों से ।
विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ चलेंगे तो हमारी गति और प्रगति भी हाथों में हाथ डालकर हमें उन्नति के चरम शिखर पर पहुँचा देगी। तो आओ बच्चो ! आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्त्व का निर्माण करते हैं।
कोरी वैज्ञानिकता युग को प्राण नहीं दे पाएगी, कोरी आध्यात्मिकता युग को त्राण नहीं दे पाएगी, दोनों की प्रीत जुड़ेगी, युगधारा वहीं मुड़ेगी। - आचार्य तुलसी