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आओ जीना सीन...
सफलता (40)
अफलता (1)
आओ जीना सीन...
ज्ञान...ज्ञान... ज्ञान...
ज्ञान
अपनी प्रगति करनी है तो दूसरा आधार है ज्ञान । अपनी क्षमता बढ़ानी है, योग्यता का अंकन और विकास करना है तो चाहिए निरंतर नया ज्ञान । ___ “पढमं नाणं तओ दया" - पहले ज्ञान फिर होगा आचार। जब तक कोई बात जानते ही नहीं तो करोगे
प्रत्येक व्यक्ति, कैसे? इसलिए जानना आवश्यक है। जानने के बाद जिससे मैं मिलता ही चिंतन होगा और उसके बाद आचार होगा। ज्ञान है, किसी न किसी का महत्त्व समझना जरूरी ही नहीं अत्यावश्यक है।
बात में मुझसे केवल शाब्दिक रूप में नहीं लिख रही हूँ। मेरा अतीत, मेरा अनुभव और ज्ञान जो मैंने प्राप्त किया, बढ़कर है। वही, मैं उसी के द्वारा मुझे पता चला कि कितना सही बताया उससे सीखता है। है ग्रंथो में - हर समस्या का समाधान पाने के लिए
- एमर्सन ज्ञान आवश्यक है।
"ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः" - ज्ञान के बिना दुःख मुक्ति नहीं। "नाणस्स सारमायारो' ज्ञान का सार ही आचार होता है। इसके लिए ज्ञान आवश्यक है।
मैं हमेशा नया ज्ञान लेती हूँ। हर बार इसे लेने के बाद ज्ञान बढ़ा है, इससे अधिक महसूस होता है कितना अज्ञान है। हर व्यक्ति, हर घटना और हर छोटी-छोटी बात में ज्ञान मिलता है। बस, अपना मन और आँखें खुली होनी चाहिएं, चारों तरफ ज्ञान ही ज्ञान है। “नाणं पयासयरं" - ज्ञान ही प्रकाश देता है।
कुरान शरीफ में कहा है - “पालने से लेकर कब्र तक ज्ञान प्राप्त करते रहो' ज्ञान इतना है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
गांधीजी कहते थे - “जीवन में ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र वस्तु नहीं है।'
सबसे महत्वपूर्ण बात मुझे गेटे की लगती है। वो कहते थे-ज्ञान ही काफी नहीं है, इस पर अमल भी करना चाहिए। इच्छा ही काफी नहीं है, इस पर काम भी करना होता है।
केवल पुस्तकीय ज्ञान जहां तक अनुभव में नहीं आता, अज्ञान है। साक्षात जान लेने पर वह ज्ञान बन जाता है। जीवन से जोड़कर प्रयोग में आने से ज्ञान विज्ञान बन जाता है। - अज्ञात
अपनी आँखें और मन खुला हो तो हर जगह हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
उच्च शिक्षा वही मानी जाएगी जिसे
पाकर मनुष्ट में
विनमता, परोपकारी वृत्ति, सेवाभावी स्वभाव एवं कार्य करने की तत्परता में डिमातोकिसव