Book Title: Aao Jeena Sikhe
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 37
________________ सफलता 0 आओ जीना मीनवें... रुचि जिंदगी का आनंद तब आता है जब हमारे मन में जो है, जैसा है वैसा करने को मिलता रहे। है ना बच्चो ? हमें पता है, बच्चे चाहते हैं खेलें, मस्ती करें, टी.वी. देखें और हम हैं कि हमेशा टोकते रहते हैं, यह मत करो, वह मत करो, अभी मत खेलो। बच्चे हैं तो पढ़ना पड़ता है, स्कूल जाना, अध्ययन करना जितना आवश्यक है, इसके साथ हमें तनावमुक्त होना, जीवन का आनंद लेना भी सीखना चाहिए। इसके लिए जीवन में अपनी पसंद की बातें करना जरूरी है। बचो ! अपने आपको देखो, समझो और जानो। तुम्हें सबसे अच्छा क्या लगता है? क्या करने से अत्यधिक आनंद और सुकून मिलता है? जो करने से खुशियाँ ही खुशियाँ मिलती हों, उसे कहते हैं अपनी रुचि अथवा हॉबी। यह अंदर से होती है, ऊपर से थोपी नहीं जाती। आओ जीना सीन... अफलता (1) जैसे चित्रकला में रुचि होना, थोड़ा सा प्रयत्न करते अच्छे चित्र निकालना, चित्र को देखते खशी होना, चित्रकारी में खो जाना... इसे कहते हैं तुम्हें इसमें इन्टरेस्ट है, यह तुम्हारी हॉबी है। इस प्रकार किसी को संगीत, खेल, किताबें पढ़ना, अभ्यास करना, स्टेम्पस् जमा करना, कॉइन्स जमा करना ऐसे कई विषय हो सकते हैं। पर जो करने से बेहद आनंद होता है, हम उस समय सबकुछ भूल जाते हैं। तो बच्चो ! इसे हॉबी कहते हैं। जीवन में अपनी पसंद की बात करना यह अत्यंत आनंद देता है। सब दुःखों को भुला देता है। हर व्यक्ति की अपनी अपनी पसंद होती है। जैसा वातावरण, वृत्ति, प्रवृत्ति और मार्गदर्शन हो, वैसे अलग विषय हो सकते हैं। इसमें दो फायदे होते हैं, पहले तो खुद का आनंद और दूसरा इसमें आप इतने आगे बढ़ सकते हैं, एक्सपर्ट हो सकते हैं कि आपका नाम पूरे देश में चमक सकता है। खेल, चित्रकारी, संगीत सबमें आप पुरस्कार प्राप्त कर स्कूल, समाज और धीरे धीरे राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकते हो। HOBBIES o Music o Reading o Dansing o Collections o Playing o Yoga o Painting दृढ संकल्प हुवर इंजीनियर बन चुके थे, लेकिन बेरोजगार थे। नौकरी की खोज में एक उद्योगपति के पास गए और उससे अनुरोध किया, 'आपके पास कारखाने में इंजीनियर का कोई स्थान रिक्त हो तो कृपया मुझे रख लें।' उद्योगपति ने कहा- 'इस समय इंजीनियर का स्थान तो खाली नहीं है, किंतु एक टाइपिस्ट का स्थान अवश्य खाली है। क्या तुम टाइपिस्ट का कार्य कर सकोगे?' हुवर ने कहा- 'कर सकूँगा, लेकिन चार दिन बाद उपस्थित हो सकूँगा।' इस पर उद्योगपति ने उसके व्यवहार से प्रसन्न होकर स्वीकृति दे दी। हुवर को टाइप करना नहीं आता था। किन्तु वे संकल्प के धनी थे। घर आकर रात-दिन टाइप करने के अभ्यास में जुट गए। पाँचवें दिन नौकरी पर उपस्थित हो गए। परीक्षा हेतु उन्हें टाइप करने के लिए एक कागज़ दिया गया, एक भी भूल नहीं हुई। वे नौकरी पर रख लिए गए। महान लोग बड़े अवसर की राह नहीं देखते, छोटे अवसरों को भी बड़ा बना देते हैं।

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