________________
आओ जीना सीखें....
5 अंत में.....
रूप और गुण 100
आजकी जो पीढ़ी है वह अध्ययन करने में भी बोर हो जाती है। श्रम करती नहीं है और कुछ भी करने का आलस आता है। उन्हें तो बस टी.वी. देखना, कम्प्यूटर चलाना और मोबाईल से बातें करना इसी में इन्ट्रेस्ट रहता है।
आजकल जो परिग्रह बढ़ रहा है, फैशन और मेक-अप का आकर्षण सब में आ रहा है। इसे कम करके गुणों को बढ़ावा दें जैसे सेवा, समर्पण और मैत्री का भाव स्वीकार करें। अपना कल्याण करे तथा परिवार को भी खुश रखे। यह तभी हो सकता है जब अन्दर के भाव जग जाएंगे। अच्छे गुण आएंगे।
रुप और गुण
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक दिन अपने प्रतिभाशाली किन्तु कुरूप प्रधानमंत्री चाणक्य से कहा 'कितना अच्छा होता अगर आप गुणवान् होने के साथ-साथ रूपवान् भी होते।' पास ही खड़ी महारानी ने चाणक्य को मौका दिए बगैर तुरन्त ही जवाब दिया 'महाराजा रूप तो मृगतृष्णा है। आदमी की पहचान तो गुण और बुद्धि से होती है, रूप से नहीं।' 'आप रूपवती होकर भी ऐसी बात कर रही हैं?' सम्राट ने प्रश्न किया'क्या ऐसा कोई उदाहरण है जहाँ गुण के सामने रूप फीका दीखे?'
'ऐसे तो अनेक उदाहरण है, महाराज! चाणक्य ने जवाब दिया, 'पहले आप पानी पीकर मन को हल्का करें, फिर बातें करेंगे।' उन्होंने दो गिलास बारी-बारी से राजा की और बढ़ा दिये। महाराज! पहले गिलास का पानी इस सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी काली मिट्टी की उस मटकी का था। अब आप बतावें, किस गिलास का पानी आपको मीठा और स्वादिष्ट लगा?' सम्राट ने जवाब दिया 'मटकी से भरे गिलास का पानी शीतल और स्वादिष्ट लगा एवं उससे तृप्ति भी मिली।'
महारानी ने मुस्कराकर कहा- 'महाराज! हमारे प्रधानमंत्री ने बुद्धिचातुर्य से आपके प्रश्न का जवाब दे दिया। भला यह सोने का खूबसूरत घड़ा किस काम का, जिसका पानी बेस्वाद लगता है। दूसरी और काली मिट्टी से बनी यह मटकी, जो कुरूप तो लगती है लेकिन उसमें गुण छिपे हैं। उसका शीतल-सुस्वादु पानी पीकर मन तृप्त हो जाता है। अब आप ही बतला दें कि रूप बड़ा है अथवा गुण एवं बुद्धि?'
-
-
आओ जीना सीखें...
रूप और गुण 101 सोने की परीक्षा काटकर, तपाकर, घिसकर और पीटकर होती है, वैसे ही अच्छे इन्सान की परीक्षा उसके गुणों से होती है
(सहकार्य
संस्कृति
( अहिंसा
श्रम
समर्पण
त्याग
शील
विश्वास
सहिष्णुता
सत्य
विनय आदर्श
अनुशासन
मैत्रीभाव
संस्कार
के
पढ़ाई
साथ
जीना
सोने को तपाये बिना कड़ा नहीं बनता, मिट्टी को भिगाये बिना घड़ा नहीं बनता,
कड़े और घड़े की तरह संघर्ष का बेड़ा पार किए बिना इन्सान बड़ा नहीं बनता
गुण अपने में लाए बिना इन्सान महान नहीं बनता