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सफलता (50)
आओ जीना सीन...
सफलता (6)
आओ जीना सीन...
आयोजन-नियोजन
संकल्प चाहे अभ्यास के हों, अपने करियर के हों अथवा जीवन निर्माण के बारे में हों, संकल्प निश्चित करना बीज बोने के समान है। फल प्राप्ति के लिए ठोस योजना, सुव्यवस्थित आयोजन और पुरुषार्थ की जरूरत है। इसके साथ चाहिए सतत जागृति । बीज बोने से फल प्राप्ति तक जो पुरुषार्थ करना पड़ेगा, उसकी पहली सीढ़ी है योजना।
बच्चो! आप किसान को याद करो। वह पहले जमीन साफ करता है, फिर बीज बोता है। जमीन साफ करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। हल जोतता है, दिन-रात परिश्रम करता है, तब जमीन साफ होती है। वैसे तुम भी चिंतन का हल चलाओ, विचार और विवेक से मन को साफ करो। अनावश्यक बातें, असीमित इच्छाएँ, राग-द्वेष-ईर्ष्या-मोह का कचरा निकाल दो। साफ और स्वच्छ मन पर सुंदर और सुनिश्चित संकल्प करो। स्पष्ट शब्दों में संकल्प के बीज वपन करो।
बीज बोने के बाद सतत मेहनत करना है। किसान जैसे खाद देता है, पानी का सिंचन करता है, वैसे आप भी व्यवस्थित योजना और नियोजन से शुरुआत करो। कागज पर लिखो। अंकुर फूटने लगते हैं तभी किसान जागृत रहता है। अनावश्यक घासफूस हटाने के सदैव प्रयत्न करता है, वैसे आप निरंतर पुरुषार्थ करो, प्रयत्न करते रहो । लक्ष्य के प्रति बढ़ते रहो, बाधाएँ आयेंगी, उन्हें हटाते जाओ।
जैसा संकल्प वैसी योजना
बद्यो! तुम्हारे सामने तो उद्देश्य स्पष्ट है, परीक्षा में अंक लाना। तो योजनाबद्ध शुरुआत करो। कब उठना, कब पढ़ाई करना । जल्दी उठकर दिन की शुरुआत प्रसन्नता से करो। उठने के बाद प्रार्थना, आसन और फिर दिन का अन्य कार्य करो । महिनों के परिश्रम के बाद याने तुम्हारे आयोजन-नियोजन और परिश्रम से मिलेगा तुम्हे फल।
जीवन अमूल्य है। मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उसमें विवेक शक्ति है। उसके द्वारा वह जीवन का उद्देश्य बनाकर संकल्प निश्चित कर सकता है। दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास, समर्पण और धैर्य से योजना को पूरा करना है।
एक बार प्रबन्धन विशेषज्ञ पीटर फुगल भारत आए थे। उनसे पूछा गया कि भारत के बारे में आपका क्या चिंतन है। उन्होंने कहा - भारत सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध देश है। यह अविकसित नहीं, परंतु अप्रबन्धित है। संसाधनों के कुशल प्रबंधन के अभाव में परिणाम अनुत्पादक होते हैं। यही स्थिति व्यक्ति के जीवन में लागू होती है। स्वयं की क्षमताओं से अपरिचित एवं कुशल नियोजन के अभाव में व्यक्ति सफलताओं के सोपान पर आरोहण नहीं कर सकता।
आज के इस जटिल संसार में विकास के लिए, लक्ष्य प्राप्ति के लिए निश्चित योजना बनाना आवश्यक है। इसके लिए स्वयं को पहचानना अति आवश्यक है। स्वयं को जानो और फिर प्रबंधन करो। प्रबंधन औद्योगिक जगत का शब्द है पर बच्चो! सीमित संसाधनों का लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्यक् उपयोग करना स्वप्रबंधन है। इसकी सर्वत्र अपेक्षा रहती है।
हर एक में अद्भुत और अद्वितीय क्षमताएँ हैं। जीवन को संतुलित बनाना और सफलता पाना एक कला है। बघो! चिंतन करो, लक्ष्य निर्धारित करो, अपनी योजना बनाओ। इसके लिए इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है - स्वयं की खोज, लक्ष्य का निर्माण, कार्यक्षेत्र का चुनाव, क्षमताओं का विकास और आत्मविश्वास।
रहो भीतर, जीओ बाहर
- आचार्य महाप्रज्ञ