Book Title: Aao Jeena Sikhe
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ आओ जीना सीनवें... पैसा हमें क्या देता है ? बच्चो ! इस तथ्य को समझो, पैसा जरूरी है पर पैसा ही सबकुछ नहीं है। पैसे से आप अप्रतिम घर, ए.सी. रूम, फोम के गद्दे और डनलप के तकिए खरीद सकते हैं। क्या इसके साथ सुख चैन की नींद मिलेगी इसका विश्वास है? शिक्षा हमें क्या देती है? 26 महल, गाड़ी, नौकर-चाकर, धन, परिवार सब कुछ होने के बाद भी शांति नहीं। कितने ड्रेस, कितने गहने और न जाने क्या-क्या खरीद लेते हैं, फिर भी समाधान नहीं और आनंद की अनुभूति प्राप्त नहीं होती है। जीवन यात्रा चलाना जरूरी है। उसके लिए पढ़ाई आवश्यक भी है, पर साथ में जीना सीखना आवश्यक है। इसके अभ्यास से शिक्षा की अपूर्णता पूर्णता में बदल जाएगी। धन कमाने के साथ उसका सही तरीके से इस्तेमाल करना सीखा जा सकता है। इसलिए स्कूल की पढ़ाई के साथ जीने की पढ़ाई भी आवश्यक है। केवल बौद्धिक उड़ान लेना पढ़ाई नहीं, शिक्षा नहीं । विविध प्रवृत्तियों और भावनाओं द्वारा सुसंस्कृत तरीके से बदलाव लाना शिक्षा होती है। डॉ. राधाकृष्णन इसलिए हमें यह निश्चित करना है कि पढ़ाई के साथ-साथ जीवन के हर पल का सदुपयोग कैसे हो, व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कैसे हो ? अपनी रुचि और जीवन को समझकर एक ऐसा लक्ष्य बनाना है, जिससे जीवन आनन्दमय और सुखमय हो । आजकल शिक्षा तो रोटी कमाने का धंधा हो गई है। यह शिक्षा नहीं मजदूरी है। इससे राष्ट्र की उन्नति नहीं अवनति हो रही है। - लोकमान्य तिलक - आओ जीना सीखें... मूल में ही कुछ भूल है शिक्षा हमें क्या देती है? 27 आचार्य महाप्रज्ञजी कहते हैं "शिक्षा ने मनुष्य को एक साधन बना दिया है। साधन इस अर्थ में बना दिया कि मनुष्य धन का अर्जन कर सके। ऐसे उपाय खोज सके जिनके द्वारा धन बढ़े, सुविधा बढ़े और किसी वैज्ञानिक तकनीक या किसी विशिष्ट क्षेत्र में उसकी क्षमताएं प्रकट हो सके। इतना सब किया जा रहा है, किन्तु वह अपने आप में आदमी बन सके, ऐसा प्रयत्न कम हो रहा है। जीवन की यात्रा को चलाने के लिए जीवन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए जो पढ़ाया जाता है, उसके साथ अच्छा जीवन जीने की शिक्षा भी अवश्य दें। अगर यह बात जुड़ जाए तो शिक्षा की अपूर्णता को पूरा किया जा सकता है। बच्चे को धन कमाने के लिए आपने खूब पढ़ाया, किन्तु सुखी जीवन जीने के लिए आपने उसे कोई शिक्षा नहीं दिलाई। पढ़ तो वह खूब गया, बुद्धि बहुत पैनी हो गयी, तर्कशक्ति प्रबल हो गयी, समझ प्रखर हो गयी। अब छोटी कोई बात होगी तो भी उसे अखरेगी। क्योंकि भावनात्मक जगत तो वैसा ही है। क्रोध वैसा ही, अहंकार वैसा ही, लोभ वैसा ही, भय भी वैसा ही कामवासना भी वैसी ही ऐसा विकास उसके लिए खतरनाक बन सकता है। शिक्षा में तीन बातों के विकास की आवश्यकता है शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक आज शारीरिक और मानसिक विकास की तो शिक्षा दी जाती है पर भावनात्मक (इमोशनल) विकास की बात नहीं की जाती जबकि तीनों में सबसे मूल्यवान यही है। इसीलिए तो मूल में ही भूल हो रही है।” मूल में ही कुछ भूल के कारण बच्चों को जो शिक्षा स्कूल में नहीं मिलती है, उसे ध्यान में रखकर इस पुस्तक में इसे देने का प्रयत्न किया गया है। दृष्टि बदलेगी तो सृष्टि भी बदलेगी । उसके लिए प्रयोग की आवश्यकता है। तभी जीवन आनंदमय होगा। विद्या के प्रांगण में अब व्यापक जीवन विज्ञान हो शिक्षा का नव अभियान हो बौद्धिकता के समरांगण में भावों का सन्मान हो

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53