Book Title: Aao Jeena Sikhe
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 16
________________ आओ जीना सीन... शिक्षा ठमें क्या देती है? ® स्वयं को पठचानो 9 आओ जीना सीन... स्वयं को पहचानो है * जागरुकता जीवन की सफलता का बड़ा सूत्र केवल जान लेने, उच्चारण कर देने या उपदेश देने से समता संपन्न नहीं होती। हम जो चाहते हैं, वह निष्पन्न नहीं होता, वह होता है क्रिया के द्वारा। प्रकृति के कण कण में कुछ है, व्यर्थ कुछ भी नहीं, हर व्यर्थ का अर्थ होता है। कण-कण एक दूसरे से जुड़ा है। प्रश्न है उसे जानना, समझना और पहचानना । सत्य की खोज हर कोई कर सकता है। इसलिए आओ, छोटी छोटी बातों को समझें। त्यर्थ क्या है? एक शिष्य ने दान-प्राप्ति के बाद अपने ऋषि-गुरु को दक्षिणा देनी चाही। गुरु ने दक्षिणा के रूप में वह चीज माँगी, जो बिलकुल व्यर्थ हो। शिष्य व्यर्थ चीज की खोज में निकला। उसने मिट्टी की और हाथ बढ़ाया तो मिट्टी बोल पड़ी - 'तुम मुझे व्यर्थ समझ रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं है कि इस दुनिया कासारा वैभव मेरेही गर्भसे प्रकट होता है। ये विविध वनस्पतियाँ, ये रूप, रस और गन्ध सब कहाँ से आते हैं?' शिष्य आगे बढ़ा, थोड़ी दूर पर उसे एक पत्थर मिला। शिष्य ने सोचा, इसे ही ले लूँ। लेकिन जैसे ही उसे लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पत्थर से आवाज आई- 'तुम इतने ज्ञानी होकर भी मुझे बेकार मान रहे हो? तुम अपने भवन और अट्टालिकाएँ किससे बनाते हो? तुम्हारे मन्दिरों में किसे गढ़ करदेव प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं? मेरे इतने उपयोग के बाद भी तुम मुझे व्यर्थ मान रहे हो?' यह सुनकर शिष्य ने अपना हाथ खींच लिया। वह सोचने लगा, जब मिट्टी और पत्थर इतने उपयोगी हैं, तो आखिरव्यर्थ क्या हो सकता है? उसके अर्तमन से आवाज आई "सृष्टि का हर पदार्थ अपने-आप में उपयोगी है।" वस्तुत: व्यर्थ और तुच्छ वह है, जो दूसरों को व्यर्थ और तुच्छ समझता है। व्यक्ति के भीतर का अहंकार ही एक ऐसा तत्त्व है, जिसका कोई उपयोग नहीं। शिष्य अपने गुरु के पास लौट गया और उनके पैरों में गिर पड़ा। वह दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया था। । माता-पिता और परिवार को यह समझना जरूरी है। बच्चे छोटे होते हैं, तभी से आप उनके पढ़ाई की कितनी चिंता करते हो, अच्छी स्कूल ढूंढते हो, उत्कृष्ट शिक्षा मिले इसकी व्यवस्था करते हो, इतना करना बच्चों के सुखी जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है। इतनी पढ़ाई करने के बावजूद भी उनका भविष्य उज्ज्वल, सुखमय नहीं होगा । बच्चों के साथ न्याय नहीं होगा। इसके लिए बचपन से ऐसा ज्ञान पढ़ाई के साथ साथ दो जिससे वह स्वयं को पहचाने । जीना सिखाने के लिए आत्मचिंतन जरूरी है। स्वनिरीक्षण करना चाहिए। आप अपना जीवन जब चाहे तब से जहां चाहिए वहां से और जैसा चाहिए वैसा बदल सकते है। बदलने का प्रारंभ कभी भी हो सकता है। बस दृष्टि बदलने की आवश्यकता है। सृष्टि अपने आप ही बदल जाएगी। दिशानिर्देश की जरूरत है। बच्चो! तुम तो बहुत होशियार हो । बात को सहज पकड़ सकते हो। मैं सबकुछ कर सकता हूँ। करने से क्या नहीं होता? यह विचार करो। देखो बच्चो! व्यक्ति स्वतंत्र है। स्वयं को परिस्थिति से अप्रभावित रखकर, मैं स्वयं सबकुछ कर सकता हूँ, यह आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टि जागे, इसी से बदलेगी आपकी सृष्टि । दूरदर्शी और रचनात्मक कार्य करना है, स्वयं की क्षमताओं को पहचानना है। पुरुषार्थ करो और नई तकनीक अपनाकर ऐसी उड़ान भरो कि देखते-देखते अपने लक्ष्य तक पहुंच जाओ। ती हूँ। करने । नेसे क्यान कर सकती मैं सबकुछ कर समा नहीं होता?

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