Book Title: Aao Jeena Sikhe Author(s): Alka Sankhla Publisher: Dipchand Sankhla View full book textPage 8
________________ एक संक्षिप्त परिचय आपने सेठ जी. एस. एम. कॉलेज से एम.बी.बी.एस., जी. डी. ओ. एफ. सी.पी.एस., एम.डी. की डिग्री प्राप्त की और 1967 में अमेरिका गई । वहां की जेविस / बार्नस हॉस्पिटल, वॉशिंगटन युनिवर्सिटी में सीनियर रेसीडेन्ट डॉक्टर के रूप में सेवाएं प्रदान की। आपने अमेरिकन फेलोसिस 1971 में प्राप्त की। आप 1973 से ही अमेरिका के डेट्रोइट शहर में अपनी सेवाएं प्रदान कर रही हैं। डॉ. भानुसेन शाह डॉ. भानुबेन शाह अमेरिकन असोसिएशन ऑफ फीजीसियन्स फ्रोम इण्डिया की संस्थापक सदस्य रही हैं। इस संस्था की स्थापना आपके द्वारा हुई। इसका गौरव आपको प्राप्त है। आपने 25 वर्षों तक मिसीगन असोसिएशन ऑफ फीजीसियन्स ऑफ इण्डिया ओरिजन की संस्थापक सदस्य रहकर संस्था का मार्गदर्शन किया। | इसके लिए आपको ऑनर दिया गया है। आप कहती हैं, मेरी सफल जीवन यात्रा में उनकी माताजी, भाई, मित्र, परिवार, गुरू और सबसे उपर अमेरिका में स्थित भारतीय समाज का आशीर्वाद रहा है और उनके प्रति अपना प्रेम, स्नेह और सम्मान व्यक्त करने के लिए उनके पास कोई शब्द नहीं है। वे भारतीय समाज को अपनी रीढ़ की हड्डी मानती हैं। योगा, ध्यान और जनकल्याण से उन्हें काफी आध्यात्मिक शक्ति मिली है। आपको 1969 से ही स्वामी परमहंस के योग-नन्दा टीचिंग से प्रेरणा मिलती आई है और तभी से आप क्रियायोग के क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रही है। 1996 में आपकी शादी इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर श्री जयभाई के साथ हुई। जयभाई भी अपने भारत देश को बहुत प्रेम करते हैं और उन्होंने भारतीय संस्कृति के अनुरूप अपने जीवन को संजोया है। सभी युवकों को वह संदेश देती हैं भारतीय खाना खाओ, कोक और पेप मत पीओ, खूब विटामीन्स खाओ। चावल और शक्कर कम खाओ। कसरत करो और अपनी संस्कृति का जतन करो। प्रेरणा मिली अमेरिका में मेरी प्रिय सखी सीमा शाह आज से करीब 35 साल पहले के पूना कॉलेज में प्रवेश के समय मिली थी और हम दोस्त बन गई। सिर्फ 1 ही वर्ष बाद उसकी शादी हुई और वह अमेरिका चली गई, लेकिन आज भी हमारी दोस्ती गहरी है। हम पत्र व्यवहार से हमेशा जुड़ी रहती हैं। मित्रता के बारे में हमेशा किस्मतवाली रही हूँ और अच्छे अच्छे मित्रों का खजाना मेरे लिए हीरे और जवेरात से भी ज्यादा मूल्यवान है। मैंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं भी कभी अमेरिका जाऊंगी। जब मैं पहली बार अमेरिका में सीमा से मिली तो आश्चर्यचकित हो गई। उसने वहां बहुत ही अच्छे संपर्क स्थापित किए हैं। बहुत बड़ा दायरा बनाया है। काफी अच्छी अच्छी संस्थाओं से जुड़ने के कारण उसने वहां मेरे कई कार्यक्रम रखे। अमेरिका में अपनी हिन्दू संस्कृति का जतन करने के लिए काफी लोग कार्यरत हैं। डेट्रोइट नूतन ओक के यहां भी सीमा ने कार्यक्रम रखा था । हिन्दू टेम्पल में भी संस्कार और संस्कृति के अच्छे कार्यक्रम होते हैं। वह डॉ. भानुबेन एवं जयभाई के यहां क्रियायोग सीखने जाती थी। मैं उनके साथ डॉ. भानुबेन के यहां गई और उनका परिचय हो गया। वहां रहते हुएPage Navigation
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