Book Title: Aao Jeena Sikhe
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 5
________________ आशीर्वचन देश का भविष्य बालपीढ़ी है। उसे जितना तराशा या संवारा जाएगा, देश उतना ही समृद्ध और विकसित होगा । बालपीढ़ी को तराशने या संवारने का अर्थ है उसे जीने की कला का प्रशिक्षण देना। बच्चों को पुस्तकीय शिक्षा देने की बड़ी-बड़ी योजनाएं एवं व्यवस्थाएं हैं। किंतु उनके संस्कारनिर्माण की दृष्टि से व्यापक स्तर पर कोई काम नहीं हो रहा है। बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं भावात्मक विकास अर्थात सर्वांगीण व्यक्तित्व का निर्माण करने के लिए एक प्रायोगिक शिक्षण-पद्धति की अपेक्षा है। बहन अलका सांखला ने अपने अनेक वर्षों के अनुभवों को आधार बनाकर बच्चों के लिए एक पुस्तक लिखी है आओ जीना सीखें। प्रस्तुत पुस्तक अपने ढंग की पहली पुस्तक है। चित्रों के माध्यम से इसे आकर्षक बनाने का भी प्रयास किया गया है। संभावना की जा सकती है कि प्रस्तुत पुस्तक देश-विदेश की समग्र बालपीढ़ी के ज्ञानवर्धन एवं संस्कारनिर्माण में उपयोगी सिद्ध होगी। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा टमकोर 28-11-2006 शुभेच्छा संदेश नैतिक समाज के निर्माण में आपकी किताब बच्चों के सामने रखकर आपने बहुत ही बढ़िया योगदान दिया है। छोटी-छोटी लेकिन काम की बातें सरल • भाषा में चित्र और कहानी के द्वारा बताकर आपने एक अच्छी लेखिका का परिचय दिया है। बच्चों के अच्छे संस्कारों के निर्माणकार्य में आप आगे बढ़ते जाइए, हम आपके साथ है। आज के बच्चों में अखूट शक्तियाँ भरी पड़ी हैं, लेकिन योग्य दिशासूचन • मिलने पर व्यय हो जाती है। इसे आपने खूबी से सही रास्ता दिखाकर पवित्र काम करने की कोशिश की है। अभिनंदन... अभिनंदन.... अभिनंदन ..... दि. 10-11-2006 रीटाबेन एन. फूलवाला (आचार्या) शेठ श्री पी. एच. बचकानीवाला विद्यालय, सूरत शुभेच्छा संदेश युग-विचार परिवर्तित हो रहा है। भौतिक महत्ता का प्राधान्य हो गया है। सुविधाएँ व्याप्त हो रही है। इससे मनुष्य का रचनात्मक संघर्ष एवं प्रस्वेद की प्रसन्नता लुप्त हो रही है। नीति-विचार की ओर से मनुष्य ने मुँह मोड़ लिया है। शिक्षा, दीक्षा बस भोग की दीक्षा बन गई है। ऐसे वक्त पर “आओ जीना सीखें..." जैसी संजीवनी किताब बच्चों के नीति स्वास्थ्य का जतन कर सकती है। लेखिका की लेखनी ने बच्चों को रहबर बनाने का भीष्मकार्य सिद्ध किया है। बच्चों की परवरिश में छोटी-छोटी बातों का दृष्टांत के साथ ध्यान रखकर सही शिक्षा का निर्देश दिया है। नैतिकता एवं संस्कार शिक्षा के सभी अंगों से ऊपर है और गुणांकन से परे है। इस बात को लेखिका ने मजबूत तरीके से पेश किया है। भाषा सरल और सहज कलम से आती है। पाठशाला, मदरसों, विद्यालयों के लिए यह किताब संस्कार सृजन के लिए एक इल्म का कार्यमा जोशी ती औचार्य) आई.जी. देसाई स्कूल, दि. 12-11-2006

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