Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[3]
दीप
अनुक्रम
[२]
आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+वृत्तिः) भाग-४
अध्ययनं [१], निर्युक्तिः [ १०५७ ], वि० भा० गाथा [ ३५४२- ३५३४ ], भाष्यं [१९१], मूलं [१] / गाथा [-] नदीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
श्रीआव० मलयगि०
वृत्ती सूत्रस्पर्शिका
॥ ५८१ ॥
तिया तिनि दुया तिन्निकाका य होंति जोगेसु । तिदुएकं तिदुइकं तिदुएकं चेब करणाई ॥ १॥" आगतफलं तु क्रमेणैवम् - एक एककायत्रिका द्वौ नवकी एकखिको द्वौ नवकाविति, स्थापना १३३२२२१११ का पुनरत्र भावना न करेइ न कारवेइ करंतंपि अन्नं न समणुजाणइ मणेणं वायाए कारणं एस एको १२३३११३९९ भेदो, नन्वेष भङ्गो देशविर - तस्य कथमुपपद्यते ?, अनुमतेस्तस्य प्रतिबन्धासम्भवात् नैष दोषः, स्वविषयाद्वहिरनुमतेरपि प्रतिषेधसंभवात् यथा स्वयंभूरमणसमुद्रमत्स्यादिधाते, उक्तं च- “न करेईच्चाइ तिगं गिहिणो कह होइ देसविरयस्स ? । भन्नइ विसयस्स वहिं पडि - सेहो अणुमती ॥ १ ॥” अत्रैवाक्षेपपरिहारी भाष्यकृदाह - " केई भणति गिहिणो तिविहं तिविद्वेण नत्थि संवरणं । तं न जतो निद्दिकं पन्नत्तीए विसेसेउं ॥ १ ॥ तो कह निजत्तीएऽणुमइनिसेहोत्ति ? सो सविसयंमि । सामन्नेणं नत्थि उ तिविहं तिविण को दोस्रो ? ॥ २ ॥ पुत्ताइसंततिनिमित्तमेत्तमेकादसिं पयन्नस्स । जंपति केइ गिहिणो दिक्खाभिमुहस्स तिविहंपि ॥ ३ ॥ ( विशे ३५४२-३-४) एतास्तिस्रोऽपि गाथा भावार्थमङ्गीकृत्योपोद्घातनिर्युक्ता भाविता इति न भूयः प्रतन्यन्ते । आह कहं पुण माणसा करणं कारावणं अणुमती य ? । जह वइतणुजोगेहिं करणाई तह भवे मणसा ॥ १ ॥ तयहीणता वइतणुकरणाईणमहव मणकरणं । सावज्जजोगमनणं पद्मत्तं बीयरागेहिं ॥ २ ॥ कारवर्ण पुण मणसा चिंतेइ करेड एस सावजं । चिंतेती उ कए पुण सुट्ठ कथं अणुमती होइ ॥ ३ ॥ गाथात्रयमपीदं सुगमं एष गतः प्रथमो भेदः, न करेइ न कारवेइ करंतंपि अन्नं न समणुजाणइ मणेणं वायाए एस एको १, मणेणं कारण य विइओ २, वायाए कारण य तईओ ३, एस बिइओ मूलभेदो गतो । इदाणिं तइओ न करेइ न कारयेइ करंतंपि अन्नं न समणुजाणइ
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प्रत्याख्यानभंगाः
॥ ५८१ ॥
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