Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [१०६३], विभा गाथा [३५७१], भाष्यं [१९१...], मूलं [१] / गाथा ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक' नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१]
दीप अनुक्रम [२]
दोपचइतो, सो तबस्सी पचंतनिवेहि मंतीहि य परिहविजइ, नगरं च उत्तमखयं पवनं, अंतेउरंपि कमपि अवत्थं गयं न जाणि
अइ, ता एवमणेण बह लोगो दुक्खे ठवितोत्ति अदट्ठबो एस, तं सोऊण तस्स कोवो जातो, चिंतियं चडणेण-को मम पू पुत्तस्स अबकरेइ ?, नूणममुगो, ता किं तेण ?, एयावत्वगतोवि विणिवाएमि, माणससंगामेण रोदज्झाणं पवन्नो, हस्थिणा |
हत्थिं वावाएइ, आसेण आसं, इच्चाइ विभासा, एत्थंतरे सेणिओ भयवं बंदतो जाइ, तेण दिट्ठो, बंदितो, णेण ईसिपि नोट निज्झाइतो, सेणिएण चिंतियं-सुकज्झाणोवगतो एस भयवं, एरिसंमि झाणे कालगयस्स का गई हवइत्ति भयवं पुच्छिस्सं, ततो गतो, बंदिऊण पुच्छितो णेण भयवं, जंमि ठाणे ठितो वंदितो मए पसन्नचंदो तंमि मयस्स कहिं उवयातो भवति !, भयवया भणियं-अहेसत्तमाए पुढबीए, ततो सेणिएणचिंतियं-हा किमेयं ?, पुणो पुच्छिस्सं, एत्थंतरंमि पसन्नचंदस्स माणसे ही संगामे पहाणनायगेण सहावडियस्स असिसत्तिचक्ककप्पणिपमुहाणि पहरणाणि खयं गयाणि, ततोऽणेण सिरत्ताणेणं वावाएमित्ति परामुसियमुत्तमंगं जाव लोअं कडं पासइ, ततो संवेगमावन्नो महया विसुज्झमाणपरिणामेणं अत्ताणं निदि पवत्तो, समाहियं पुणरवि अणेण सुकज्झाण, एत्यंतरंमि पुणरवि पुच्छितो सेणिएणं भयवं-जारिसे झाणे संपर पसन्नचंदो वट्टा तारिसे मयस्स कहिं उववातो?, भगवया भणियं-अणुत्तरेसु, ततो सेणिएण भणियं-पुर्व किमन्नहा परूवियं ? उयाहु मया अन्नहा अवगच्छियं ?, भयवया भणियं-न अन्नहा परूवियं, सेणिएण भणियं-कहमेयंति ?, भयवया सबो वुत्तंतो कहितो,
एत्थंतरे पसन्नचंदसमीवे दियो देवदुंदुभिसणाहो महंतो कलयलो उद्धाइतो, ततो सेणिएण भणियं-भयवं! किमेयंति , || भयवया भणितं-तस्सेव विसुज्झमाणपरिणामस्स केवलनाणं समुप्पण्णं, ततो से देवा महिमं करेंति, एस एव दबविउस्सग्ग
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