Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 284
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [८], उद्देशक [५], नियुक्ति: [२७५...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २१६-२१७] श्रीआचा- संग सत्र चूर्णिः ७ अध्य ६ उद्देशः ॥२७९।। प्रत वृत्यक २१६२१७]] तेसु समाहिलिस्सो संते कोहादिपहि, विरतो पाणावायातीतो, मुट्ठ संमं अप्पते अहिलिस्सो सुसमाहियलेसो, पसस्थासुनी प्रतिमा |लेसासु अप्पा आहितो जस्स जेण वा अप्पते आडियाओ लेस्साो तत्थेव तस्स कालपरियाग एवमेव एमा, जेण सो गिलागो । अपडि कम्मसरीरो अण्णेण य असरिकप्पितेण गहितं अगिण्हमाणो काले करेजा तस्स कालपायो मन्नुमेव तस्स गणिजह से | तत्थ वियंतिकारए, इच्चेयं विमोहायणं हितं सुहं धम्म णिस्सेसं ४ आणुगामितंतिबेमि । विमोक्षाध्ययनस्य पंचम उद्देशकः॥ तिवत्थदुवत्थेहिंतो इमो बलवंतो संघयणजुनो जेण तस्स सुतं-भिक्खू एगेणं वत्येणं परिचुसितो जाव संमत्तमेव | समभिजाणित्ता, अभिग्गहबिसेसाहिगारे एव अणुयत्तते, तंजहा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति जस्स जयो जेसिं वा भिक्खू पूर्ववत् एवमवधारणे, किं भवति ?-वसाओ बुद्धिअज्झवसाओ एगहुँ, जहा एगो अहमंसि एगो नाम रागदोसरहितो |ण मे अस्थि कोइवि, ण पडिसेहे ण मम अस्थि-ण विति, कोइवित्ति पुब्बसंजोगो मातापितिमादि, सो भावतो परिचत्तो, बिजमाणो भवति मम तहेब आयरिओ विसेसिञ्जति एए बासिणोवि में अत्यित्ति जहेव भावओ परिचनं ता ण मम कोई णिोM नहा णाहमवि कस्मति, एवं से एगो णियमेव अप्पाणं समभिजाणेजा, एवं एएणं प्रकारेणं, स इति सो जस्स अयं अमि| पाओ ण मम कोयि ण याहमवि कस्मति एमाणियं अचंतियं एवमेव अप्पाणं समभिजाणमाणो लापवितं आगमेमाणो भाव|लापवितं, यदुक्तं भवति-अममीकारो जाव सम्मत्तमेव सममिजाणिता से आहारं स इति सो एगो, जपावि ण मे कयाति आहा रेइ ततोवि ण तं आहारं आहारेइ, आहारेमाणो नो वामातो हणुयाओ ण पडिसेहे वामाणाम अबसब्बा, तीति हणुया, Mणवि वामातो हणुयातो किंचि अस्ससे, जगं आहार दाहिणं हणुयं साहरेजा जामेव सर्व मुहं पम्हालेति, निधनदत्ता कुतो तस्स |॥२७९॥ दीप अनुक्रम [२२९२३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: अष्टम-अध्ययने षष्ठ-उद्देशक: ‘एकत्व भावना/इंगित मरण' आरब्ध: [283]

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