Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यंक
[२२६
गाथा
१-१४५
दीप
अनुक्रम
[३०४
३१७]
श्रीजाचारांग सूत्रचूर्णिः
॥३१८॥
“आचार” - अंगसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:)
श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [३], निर्युक्ति: [ २८४...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक २२६/ गाथा: १-१४]
एण वा कोह, दंसमसगा य जलोयाओ एवमादि उवसग्गे अहियासए, सपा समिते सया नाम निचकालं, फुसंतीति फासा विरूवरूवाति एयाणि य अन्नाणि य अनुलोमाणि पडिलोमाणि य, अवि दुचरलाढमचारी (८२) अवि इति अणंतरे, उबसग्गबहुता दुकरं चरिञ्जतीति दुच्चरं, लाढ इति जाणवतो, सो दुविहो– भोम्मा य, सो तेसु भगवं तात्र तेसु पन्तं सेज्जं सेवित्था, आसणाईपि चैव पंताणि, पंताओ णाम सुन्नागारादीओ, सडियपडियभग्गलग्गाओ, आसणाणि पंताणि पंसुकरीससकरालीडुगादीउवचित्राणि, कट्टासणा वा चिलागि फलपट्टयादीहिं, एरिसेसु सयणआसणेसु बसमाणस्स लाढेसु (८३) ते उवसग्गा बहवे जाणवता आगंम लाढा त एव दुविधा वज्रं सुज्झ० उपसग्मा बहवे पडिलोमा य अकोसवहादि, जाणवता उवसग्गा जणवते भवा जाणपदा, यदुक्तं भवति- अणगरजगत्रओ पार्य सो विसओ, ण तत्थ नगरादीणि संति, लूमगेहिं सो कडूमुट्ठिष्पहारादी एहिं अणेगेहिं य लूसंति, एगे आडु-दंतेहिं खायंतेति, किंच-अहा लूहदेसिए भने, तदेसे पाएण रुक्खाहारा तैलघृतविवर्जिता रूक्षा, भक्तदेस इति वसव्वे बंधाणुलोमओ उपकमकरणं, णेह गोवांगरससीरहिणि, रूक्षं गोपालह लवादादीनं सीतकुरो, आमंतेऊणं अंबिलेण अलोणेण एए दिअंति मज्ाण्छे लुक्खएहिं माससहाएहिं तं पिणाति प्रकामं, ण तत्थ तिला संति, ण गावीतो बहुगीतो, कप्पासो वा, तणपाउरणातो ते, परुक्खाहारता अतीव कोहणा, रुस्सिता अकोसादी व उवसग्गे करेंति, कुक्कूरा तत्थ हिंसिसु णिवर्तिसु तत्थ बहवे कुकुरादी हिंसंतीति हिसिंसु णिवतिति सब्जओ तं निविसयति, भट्टारगस्स य नत्थि दंडउत्ति जेण ते पुण पवारेद्दिति, ते एवं णिम्भया शुक्खिया णिवर्तता अपि अपने निवारेंति (८४) जति सहसा सो कोति एगो निवारेति लूमणगा, जं भणितं होंति-भक्खणगा, भसंतीति भसमाणा, जेवि नाम ण क्खायति तेवि ते छुच्छुकारेंति आहंस आईसुचि
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[०१], अंग सूत्र [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[322]
दंशायध्यासनं
રૂદ્રા
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