Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [२], नियुक्ति: [२८४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१६]
प्रत
वृत्यंक
[२२६गाथा १-१६]
श्रीश्राचा
मासाओ. पचायति भिसं वायति, तपि एगा अण्ण तिस्थिया वमहीओ निवाता करेंति. पाउरणाई फंफगाई. उफ आहारयं. चण्णं निवातायTH-I7 एत्थं झुंजंति, जतिवि कुंचियाविज्झे(छिद्दे)ण सीतं एति तेणेति भणति-दुक्खाविओ, जेवि पासावचिजा तेविण संजमे रमंति,
भावः चूर्णिः | संघाडीओ (७८) वस्थाणि कंबलगादि पहिरिस्सामो पाउणिस्सामो, समिहातो कट्ठाई, ताई समाङहमाणा गिहत्थअण्णउत्थिया, ॥३१७॥ एवं सीतपडिगारं करेमाणो तहावि दुक्खं सीतं अहियासेइ, पिहिता पाउया वा पस्सामो अतिव दुक्खं हिममयं पएसं (७९) तहिं काले ८ उप०
| भावेंति अपडिपणे बसहि पडुच्च ण मए णिवाता वही पत्थेयव्या, अहिगदाएवि अहियासेति, दविते पुन्वभणिते, अह अश्वत्थं ३ उद्देशः
सीतं ताहे णिक्वंम गगता राओ बसहीओ रातो-राईए मुहत्तं अच्छित्ता पुणी पविसति रासमदिट्टतेणं, पृणो य वसति च। | एति, स हि भगवं समियाए सम्ममणगारे, न भयट्ठाए वा सहति, एस विही अणुकतो (८०) स इति जो भणितो, विहाणं
विही, अणु पच्छाभावे, जहा अन्नतित्थगरेहिं कतो तेणावि अणुकतो, पूर्ववतु एतस्स सिलोगस्स बक्खाणं कायब्ध, पढमुद्देमए इति ।। || उपधानधुतस्य द्वितीय उद्देशकः परिसमाप्तः ॥
उद्देसामिसंबंधो भणितो, चरिता पदमुहेसए, अज्झयणे तस्स तया, वितिए सेआविहाणं भण्णति. णिसीहियाहिगारो संपर्य. | सो जहा सामायियणिज्जुत्तीए भगवं अच्छारियदृष्टान्तं मणमा परिकप्पेऊणं लावाविमयं पबिट्टो, एन्थेव निसीहियापरीमहो अधिकतो. तत्थ निसीयणं णिसिजा, यदक्तं भवति-निसीहियासु बसतो उबसग्गा आसी, तंजा-तणफास सीयफासं तेउफासे य दंसमसए य (८१) तरतीति तरणं, तत्थ पहुंजयमादी तणा लगंडसीतफासेण ठितं विधति, णिसन वा कडगकिसासरदन्मादि, सीतं पुण पब्वयाइन्नदेसे अतीव पडति, तेउत्ति उण्हंति, आतावणभूमी व हालदामाए अग्गिमेव आसी, उल्लु
दीप
अनुक्रम [२८८३०३]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: नवम-अध्ययने तृतीय-उद्देशक: परीषह' आरब्ध:,
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