Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन[१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२८५-२९७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-९]
चूर्णिः
प्रत वृत्यक [२२६गाथा
ONDAR
भीआचा- बहुअग्गं जीवादीणं छण्हं पञवग्गं (२८६) उवचारे पवबंभचेराणि, उवचरितं आचारग्गाणि दिअति, अतो आयारस्सेव अग्गाणि |
| अग्रादिसंग सूत्र
निक्षेपः Dआयारम्गाणि जहा रुक्खस्स पध्वयस्स वा अग्गाणि, तधेयाणिं आयारस्स अम्गाणि, जहा रुक्खगं पब्बतम्ग का रुक्खा पव्यया,
वाण अत्यंतरभूयाणित्ति एवं ण आयारा आयारग्गाणि अत्यंतरभूयाणि, एत्थ पुण भावग्गेण अहिगारो, तत्थवि आयारउवयार-10 ॥३२६||
भावग्गाणि, उवचारंति वा अहीयंति वा अज्झितंति वा एगटुं, एयाणि पुण आयारम्गाणि आयारा चेव णिज्जूढाणि, केण णिज्जढाति, थेरेहि (२८७) थेरा गणधरा, किं णिमित्तं ?, अणुग्गहत्थं साहूणं सिस्साण हियत्थं पागडत्थं च भवउत्ति आयारस्स | अत्थो आयारग्गेसु णिज्जूढो, दवितो भविता, पिंडीकतो पृथक् पृथक् , पिंडस्स पिंडेसणासु कतो, सेजत्थो सेजासु, एवं सेसाणवि, | सो पुण कतरेहिंतो कतो', वितियस्स (२८८) अज्झयणस्स पंचमगाओ उद्देसगाओ, 'जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं लोगस्स कम्मसमारंमा कअंति, तंजहा-अप्पणो से पुनाणं धूयाणं धूईणं सवामगंध वा परिणाय बत्थपडिग्गहकंबलेण पादपंछणं ओग्ग IN | कट्ठासणं' अट्ठमस्स वितियाओ उद्देमगातो तं 'मिक्खू उवसंकमित्तु गाहावई चूया-आवसंतो! समणा अहं खलु तब अट्ठाए असणं
या ४ वत्थं वा पडिग्गरं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाई भूयाई जीवाई सचाई समारंभ समुद्दिस्स कीयं पामिर्च अचिज | अणिसहूं अमिहडं आहटु चेतेमि आवसह वा समुस्सिणोमि' एतेहितो पिंडेसणसेज्जावत्थेसणा पादेसणा, उग्गहपडिमा णिच्छूढः ।। | पंचमस्स (२८१) लोगसारअज्झयणस्स चउत्थाओ उद्देसगाओ, 'गामाणुगाम दुइजमाणस्स तद्दिट्टीए पलिबाहिरे पासित पाणे गच्छिज्जा से अभिक्कममाणे एत्तो रिया णिच्छूढा, छट्ठस्स पंचमाओ उद्देसगाओ 'पाइन्न पडीनं दाहिणं उदीणं आइक्खे विरुए किडे' एनो भासजाता, सन सत्तिकगाई (२९०) सत्तवि महापरिणाओ एकेकाो उद्देसाओ, सत्यपरिणाओ भावणा, घुयाओ ||॥३२६।।
दीप अनुक्रम [३३५३४३]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: • प्रथमा चूलिका आरब्धा,
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