Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 342
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन[१], उद्देशक [५], नियुक्ति: [२९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २५-३०] प्रत वृत्यंक २५-३०] श्रीआचा | माणा कुंभकारादिणा चलणं वा, चित्तमंता मसिणा सिला एव सचित्ता, लेलु महिना, उडओ सचिनो चेव, कोला मता मधुणो, रांग सूत्र-| तस्स आवास कंट, अन्ने चा दारुए, जीवपतिहित हरितादीणं उवरि, उदेहिगाग वा सचिने वा, सअंडो सपाणे पुख्यमणिता, चूणि : | आमजति एकसि, पमअति पुणो पुणो, अससरखं अचिन, देंगे असति उग्गहो अणुण्णावेजति तणादीर्ण, एनमादीहिं पम॥३३७॥ | अजा, मणुस्सं वियालो णाम गहिल्लमत्तओ, गहिल्लाउ हारणपिसाइया गहिता, सेमा गोणादिमारगा अलकइभाषा, खुड्डा खायंति अस्मिन्निति तं, उवातं, वेसी मृसिगा धूली वा, मिल्लुगा पुढाली वा विसममि सुणयं पाणियं तिलविजलं, न दुवारवाहा अग्गदारं कंटगोंदिता अहेसी, शेदियग्गहणा करंगचेलादिणा निहितं, अणुज्यन्न वित्तावि ण वदति, अणुभवितुं वहते गिलाणादिसु | कारणेसु । गामपिंडोलतो विजमाणा ओलेति, संलोगो जहि द्वितो दिस्सति, सपडिदुवारं सपडिजुनं दारस्स, केवली चूना, तस्स पुचपविदुस्स णीणियं विहरेजा, अचियत् अंतरालियदोसा, निहत्थो वा भणति जो एत्तो चेव पडिच्छत्ति, एते दोसा जम्हा पुब्बोद्दिट्टाए पदण्णाए, प्रतिज्ञा हेतुरुपदेशः, एप भगवतां जंणो संलोए, सेनमादाय चावा अणावात संलोए तस्सपि, तस्स | तस्स गिहत्थो सम्बेसि सामन्न गिहपासंडसंजएहिं सम्मं दिअ, भणेज य-अहं अक्खणितो तुझे चे मुंबत परिभातेत वा, तं| च केइ गिण्हित्ता तुसिणीए. माइवाणं णो एवं करेजा, जइ फव्वंति ण गेहंति, अह असंथरणं गिलाणादीण वा णस्थि ताहे गेहंति, अह असंथरणं तचेव भायंति, अह भणंति-तुम पेव भाएहि, ते वा बेंटलेंति ताहे परिभाएति, खद्धं-बहुगं, डार्ग सागं । वाहंगणमादि, अह भणंति-मुंजामो, तत्थ अप्पणो उकट्टति तेसिं तहेव देति, अह णिच्छंति, एवं पुण पासत्थेहिं असंभोइएहिं वा, गामपिंडोलादि पुचपविढे उवादिकम्म णो पविशे, मा पडिसेहिते व दिपणे वा पवेसेज का ओभासेज बा, एवं खलु भिक्युस्स दीप अनुक्रम [३५९३६४ ||३३७॥ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [341]

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