Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 340
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन[१], उद्देशक [४], नियुक्ति: [२९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२-२४] श्रीआचा रांग मूत्र चूर्णिः ॥३३५।। प्रत वृत्यंक २२-२४] | मारिजेज, मंसखल जत्थ मंसा सुक्याविति सुक्खस्स वा कडयल्ला कता, एवं मच्छगाणवि सामाणो, तणखलाई काउं सुखावेत्तापिटेपणा विभयं भत्ताई करेति, पहेणं आहेणं वा तिनाणं, वधुया हिजति एहेण वधूइत्ता, अहवा जं आणिअति तं पेहिणं (पहे)हि, हिंगोपलं ध्ययन करडयभक्तं, सम्मेलो विवाहभत्तं, पच्छाकम्मेण या मित्ना वा कजंति भत्तं काऊण, अहवा गोट्ठीमनं संमेलं, हीरमाणं, अहवा कीरति । अंतरा, बहपाणा पीपीलगसंखणगइंदगोवगईदजुवादि पुबुताणि, बहवो समणमाहणा उवागता गमिस्संति पच्छा अत्यर्थः आइण्णा [2] अचाइण्णा चरगादीहि नो पन्नस्स प्रज्ञावां प्राज्ञः तस्य प्राज्ञस्य अचाइण्णनणेग ठाणादी ण सकंति काउं, विसयपवेमा दुक्खं, | लोगो य भषज-अहो जिभिदियं अदंतं साहूणं, सो एवं गचा रायभिसेयाईसु चेव अप्पपाण दिसु अपादिनासु निकारणे ण | कप्पति, गिलाणणाणकारणादिसु कक्खडखेत्तवत्तब्वा, असंथरणे वा एगदिवसअणेगदिवसियासु गिण्हेजा, तत्य य वेलाए थेव | पविसिञ्जति, अवेलाए उस्सकणं पवत्तणदोसा । से भिक्खू बा भिक्खुणी वा खीरिजमाणासु संजयट्ठाए गात्री दुहितुं दिआ, उबक्खडिजमाणे संजतहाए किंचि छान्ती उबक्खडिज, अप्पहितं ण तात्र दिजति, संजयट्ठाए पवत्तणं होजा, एते दोसे जाणिना दो गाहावइकुल सेत्तमादाण आदायं नाणं इह ज्ञात्वा, एगंतमवकमिजा अणावादमसंलोए, सीरियासु उबक्खडिते, पज्जू हेयं पङिन्तं, एते दोमा ण-णथि पविसिा , मिक्खणसीला भिक्खागा, नामगहणा दब्यमिक्खागा, एगे ण सव्वे, एवमवधारणे, आहेसु | कंठा, समाणा चुड़वासी, वसमाणा व विकापविहारी, दूतिजमाणा मासकप्पं चउमासकर्ष वा काउं संकममाणा कहिंचि गामे | द्विता उडुबद्धे अहव हिंडमाणा, माइट्ठाण मा अम्हं किर विममो भवतुति पाहुगए आगते भगति खुड्डाए खलु अयं बसती | खुडगा, तेसिपि मद्दतरा देंतगाई णस्थि, थोपा भोजाणि, मंडिहिं वा अना, से इंता इंतामंत्रगे, पुरसंथुना मातापितादि, पच्छा दीप अनुक्रम ३५८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [339]

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