Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन[१], उद्देशक [८], नियुक्ति: [२९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ४३-४८]
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श्रीआचा- रांगभूत्रचूर्णिः
॥३४॥
प्रत वृत्यंक [४३-४८]
त्या आम ण कप्पति । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अच्छिगं कुंभीए पञ्चति तेंडुर्ग तेम्बरूवं, एवं चेव वेलुगं विलं, कास- पिंडैपणा | वणालिता सीवण्णगं, आमगं असस्थपरिणतं लाभे संते नो पडिगाहेज्जा, कगतंदुला कणियाओ, कुंडओ कुकुसा, तेहिं चेव पूव-19 लिता शमलिता, चाउला तंदुला, पिट्ठत्ति आम, पिट्ठलोवि तिलपिढें, तिलपप्पई श्रामं असत्थपरिणय लाभे सन्ते णो पडिगाहेज्जा ॥ अष्टमी पिंडैषणा परिसमाप्ता॥
संबंधो सीलमधिकृतं, इहापि सीलं, पिंडोऽधिकतो वा इहापि पिंड एव, खेनं ठवित्ता चउदिसिं पण्णवगदिसं वा पडुश्च संते. सडा भवंति, संभवो तं साहुं प्रशान्तं दट्ठ हिंडतं सीलमंतादि संसिद्धा, इमं पुर्व सिद्ध, मेहुणादो, इतर आहारकचिणि, छदिहि, से भिक्खू विस्तामकरो वा सुहाए समणं च, एतप्पगार सो त अंतरिओ भणेज्जा पुरो वा भणिज्जा-एतस्स देह, अम्हे अण्णतरं, धम्मो, लाभे संते गो पडिगाहेज्जा । समणादी पुब्बभणिता, गामादितु पुरेसंधुता पच्छासंधूता, पुर्व पविसमाणस्स, केवली बूता, उकरेति-परिवड़ेति, उबक्खडेति रंधेति, सेत्तमादाय एगतमवकमिज्जा, कालेण सतिकाले तत्येव पढमं वच्चति इहरहावि हिंडतं दहें आरंभ करेज्जा, गिही चेश्य, अहा सकालेवि पविट्ठस्स उवक्खडिज्जा आहू तं पढियाइक्खिस्स, माइट्ठाणं| संफासे, णो०, पुष्यामेव पडिसेहिज्जा, तहवि करेजा ण पडिगाहेजा। मंसमच्छा मज्जिजति, सक्कलिग्गहणा सुकखज्जगं, 17 | पूयग्गहणा वेल्हरदो तेल्लापूतो, आदेसो पाहुणओ उ, णो खलु २ पुणो २, णण्णत्थ गिलाणो। अण्णतरं अणेगप्रकारं, सुभि
णाम वनगंधरसफासमन्तं, तबिरीतं दुम्भि, एगं भुजति एग परिदृविज्जति मायादोसा सइंगालदोसो य, रागदोसरहिता अँजिज्जा, |पाणगं पुष्फ अच्छ, कसायकलुस कपई, कसाए उहो होज्जा, अच्छेण पुण सोधणादि, सुहेति मुह, से भिक्ख या भिक्खुणी||॥३४२॥ ।
दीप अनुक्रम [३७७३८२]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रथम चूलिकाया: प्रथम-अध्ययनं "पिण्डैषणा", नवम-उद्देशक: आरब्ध:
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