Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यंक
[1-9]
दीप
अनुक्रम
[३३५३४३]
श्रीआचा रांग सूत्र
चूणिः
॥ ३२९॥
“आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्ति:+चूर्णि :)
श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], निर्युक्ति: [ २८५-२९७], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १-९]
से तमादाय गहणाय एगंतमवकमिज, एगकाः एकान्ते, अहे आरामंसि वा २ अधित्ययं णिपातः अहग्गणाऽगोयरे वा अंडगा पाणा जत्थ णत्थि हरितोदगं उस्सा वा जहिं णत्थि, उत्तिंगा गद्दभा की डियाणगरं वा, पणओ उल्ली, दएण मिस्सिता, मट्टिगा वा, मक्कडगा लूतापुडगा, तत्थ चैव कीडगा कीडियं च वा, तत्थ वा विनिश्चिता एकसि, विसोहिया बहु सोहिया, लोगमुहपोत्तियाए काए पमजेत्ता, ततो संजतगं भुंजेज वा पिएज वा जं चाएति २, ज्झामथंडिलं अज्जुसरं सामितगं अडि किड्डे हिरष्णसुवण्णाईणं तत्थ खजगादि णिसिरिजति, वीहितुसेसुं कुंडगादिसु ण उरणगादिसु संगुलिया, तत्यवि सत्तुगादि गोयमकरिसमच्छिगातो, णत्रगणिविसे पवेसे गामे दुल्लभथंडिले अबकरे परिडुत्रिजड़ पडिलेहिय २ तापमखित दूरोगाडे द्रवसिणेहादि, अदूरे सित्यादि, ततो संजतामेत्र परिहविआ, ओसहीओ सचिताओ पडिपुन्नाओ अखंडिताओ, सस्सियाओ परोहणसमत्थाओ, जहा सालि, किल अवसितिलस्स तिवरिस पंचवरिसयं, अविदला कणाण विणा, अतिरिच्छच्छिण्णाओ उज्झिताओ, फालिताओं पुण तिरिच्छी छिण्णा, आहाविणा जीवेण तरुणिया, छिवाडी कोमलिया मग्गजलिसंदातीणं, अणमिकता जीवेहिं, भञ्जिता मीसजीवाचेव, एत्तो विवरीता कप्पणिञ्जा, अववादेणं पिहूगा सालिवीहीणं, बहुरया जवाणं भवंति, भुज्झगा गोधुमाणं दुर्धति, मंथु बोरादि अण्णे वा फला केति, मथिता - चुण्णिता, मध्यतेति मंधु, चाउलं तंदुला चाउल लंब सुगिता विही सुकविता कूरमिस्सिताओ तंदुला कणिगा वा से, दुम्भजितं एकसिं, दुम्भजितं अफासुगं, विवरीयं असई भजिये दुपकं तो कप्पणिजं । अन्न उत्थिया परिमहा (हा) ति, गारत्थिया श्रीयारादी, अन्नो वा गिहत्थो, परिहारितो साहू, अपरिहारितो पासस्थो उ, भावणा वयषेण जाणंति च अप्पाणं, हरियावहियादि निराहणा वियारे दवअण्णकण्ण० असती विहारे चट्टा वारउम्घट्टगादि, गामाणुगामे थंडिलसंक्रमण अप्पमजणरागादियादिदोसा,
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[०१], अंग सूत्र [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[333]
पिंडेपणाध्ययनं
॥ ३२९॥
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