Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [४], नियुक्ति: [२८४..], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१६]
आधाकर्मवर्जनादि
प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-१६]
श्रीआचा-10 | पेहमाणे, यदुक्तं पस्समाणो, आहारं पडुच्च अपडिण्णणे, णचा णं स महावीरे (१०२) णोवि य पावगं सयमकासी अक-
| प्पियस्स आहारस्स दोस णशा, 'आहाकम्म णं भंते ! भुंजमाणो किं बंधेति !, गोयमा ! अट्ठ कम्म०'सतं पावमकासी-ज कारि
| तवान् अण्णेहिं केण कारित्या? कीरमाणपि नाणुमोतित्था कंठ, गामं पविस्स नगरं वा घासमेतं कई परवाए ॥३२३।। घासं-आहार 'अत् भक्खणे' परवाएत्ति अण्णसिं अट्ठाए सुविसुद्धं एसिया भगवं आपतजोगजाए गवेसिस्था सम्बउग्ग
मादिदासमुद्ध आयतण जागेण-तिविहेणावि सपनाणगवेसणाए सेसेहि य केवलबजेलिनाणेटिं, अद् वायसा दिगिछित्ता (१०४) जे अण्णे रसेसिणो सत्ता घासेसणाए चिट्ठते संधरे णिवतिते य पेहाए अह इति अर्णतरे, दिगिंछा छुहा, ताए अंता तिसिया वा जे अण्णे रसेसिणो काया पारवयचिट्टियादि, घासं एसंतीति घासेमणा ताए चिट्ठति-संचिटुं सततं संणिवेतया, ते मा उद्वेहिति ततो परिहरति, एवं गोणादिएवि, घरं धरेण हिंडंति, तेसि चारी दिअति करो य, एवं ताव तिरिक्खजो| णिए परिहरति घासेसणाए उछितो, इदाणिं मणुस्से अह माहणं च समणं वा (१०५) गामपिंडोलगं च अतिहिं वा माहणा मरुयादि, समणे पंच, पिंडेसु दिञ्जमाणेसु उल्लंतीति पिंडोलगा, जं भणितं-दमगा, गंडगा वा, केति भणंति-अतिहि आगंतुया, सोवागमूसियारिं वा कुछई चिट्टितं पुरुतो सोवागो साणं पचंतीति सोवागा-डोंबादि, मूसगारी मजारो, कुक्कुर्ड वा, उछितो पुरुतो, साणं वा विगप्पन्नतरं तेसिं वित्तिं अछेदेजें तो (१०६) तेसिमपत्तियं परिहरंतो, वित्तिच्छेतो जं तेसिं दायब्बं तं मा मम देहित्ति, तत्थागच्छता वित्तिच्छेदो परिहरितो भवति, अप्पत्तियं भवति जायंतस्स वा देंतस्स वा, मंदपरकमे भगवं अविहिंसमाणो घासमेसित्था मदं णाम अतुरियं घासं एसितवान् , जता पारेति तया तं जहावलद्धं भुजेति
दीप अनुक्रम [३१८३३४]
॥३२३॥
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[327]

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