Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [४], नियुक्ति: [२८४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१६]
श्रीजाचा
गंग सूत्र
चूणिः | ॥३२॥ ९ उप० ४ उद्देशः
प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-१६]
दएबि ज्झाणाओ ण चलति, रीयं-चामिति । एस विही अणोकतो माहणेण मतीमता (९४) इति तृतीयः॥ चिकित्सा
उद्देसामिसंबंधो से जासु एमणादीसु य निसीहियाठाणेसु केह नस्स गेगा उप्पन्नपुवा, तेसिंवा उदिनाणं अणुदिनाणं काति चिगिच्छा न कयपुब्धा, भणंति ण च तस्स रोगा उपजंति, जति णाम उप्पजेज तोषि ण करेति किरियं, जारिसा पुण | अढविहकम्मरोगतिगिच्छा तेण कया भगवता सा तिहिं उद्देमपहिं भणिया, इहंपि चउत्थउद्देशए तबसंजमतिमिच्छा, अखिलेसु उद्देसएमु अवि सीतदंसमसगकोसतालनादि, सकं परीसहा सोलु, दुक्खं तु ओमोदरिया, कहमिति , अतो ओमोदरियं चाएति || (९५)सा य दुविहा-दब्वे भावे य, दब्बे ताव उवगरणं प्रति ओमोदरियं अचेलता, आहारेवि अप्पाहारे आसी, ण अतिपमाणभोई0 'बत्तीसं किर कवला' एनो एकेणवि घासेणं ऊगगं, भावे परिताविञ्जमाणोविण रुसति, भणियं च-णो सुकरणं मोनमेगेसिं, चाएतिति अहियासेति, इह पायसो दब्बओमोदरिया, जण बुञ्चति-अपुढेऽवि भगवं रोगेहिं वातातिएहिं रोगेहिं अपुट्ठोवि | ओमोदरियं कृतवान् , लोगो तु जतो पुट्ठो रोगेहि भवति ततो पडिकारणनिमित्तं ओम करेति, भगवं पुण अपुट्ठो वातादीएहिं ओमोदरियं चाएति, सुभुजंग वा जहा आहारति, आह-किमितमेगंतो रोगेहिं ण सो फुसि अति, भण्णति-धातुक्खोभितेहिं ण फुसिन्नति, जइ कोवा कटं सलागं पवेसए तहा, तह(हत)पुन्चो दंडेणं, अतो वुञ्चति-पुढे व से अपुढे वा पुढे वा, पुढे तेहिं । आगंतुएहि णो सतं स करेति, जोवि अण्णो करेति तपि ण च करेतुति साइजा, अतो णीणि अंति, एवं लाए कडगसलागाए मणसावि भगवता ण सातिजिता, सा पुण तिगिच्छा तंजहा-संसोधणं च वमणं च (९६) संसोधणं विरेयणं, वमणं | | वमणमेव, गायभंगणं मक्खणं, सिणाणं देसे तात्र हत्थपायधोवणं, दगपडिगतो वा किंचि सिंचति, सव्वे सब्बगायअमिसेयणं, आता-|1|३२१॥
दीप अनुक्रम
[३०४.
३१७]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार जिनदासगणि विहिता चूर्णि: नवम-अध्ययने चतुर्थ-उद्देशक: 'आतंकित' आरब्धः,
[325]

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