Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [३], नियुक्ति: [२८४..], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१४]
सान
प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-११
समान आहणेत्ता केति चोरं चारिपंति च मण्णमाणा, केई पदेसणेण, एवं तत्थ छम्मासे अच्छितो भगवं, पलिक्खए जणे भुजो(८५)100 परुषादिरांग पत्र-1 एलिक्खएति एरिसए, ओत्ति पुणो, ताई चेव भूय ठाणाणि विहरयं तो यहवे षज्झभूमि फरुप्सासि बहवेति पायसो ते फरुमा ||
चूर्णिः फरुसं आसंति फरुसासिणो, फरुसासित्तातो य फरुसा एव, फरुसा वा आसी अतिकंतकाले, लट्ठी गहाय नालीयं दंडं लढि च | ॥३१९॥VI गहाय, दंडो सरीरप्पमाणा ऊणो लट्ठी सरीरप्पमाणा, दरतर एवायरति, नालिया चउरंगुलअतिरित्ता, एगे चउरैगुलादि, विहरियं
| तो बहवे वज्झसुम्मे मिक्खं हिंडिंसु, ते एवं लट्ठिहत्था एगावि एवंपि तत्थ विहरतो (८६) पुडुपुया य अहेसि सुणतेहिं, | एवमवधारणे, एवमवियप्पं तेण विहरता पुट्टपुष्पा भक्खितपुब्बा बहवे समणमाबणा संलुंचमाणा सुणएहिं सगे लुचंति, संलु
चमाणेसु देसेसु संलुंचमाणसुणगा, दुक्खं चरिजंति दुचरमाणि कामादीणि यकसेस, निधाय डंडं पाणेहिं (८७) णिधायेति | णिक्खिप्प, इंडं ण भणति सुणए वारेहि, उबाएण डवति, मणसावि ते णावखंति, सो एवं विहरमाणो अवि गामकंटए भगवं | गामकंटगा सोतादिइंदियगामकंटगा, जं भणितं होति-चउबिहा उवसग्गा, लाढेसु पुण माणुपतिरिच्छिएसु अहिगारो, तेरिच्छगा सुणगादयो, माणुस्सगावि ते अणारिया पायं आणति, अमिस नेवत्ति तं लादविसयं, यदुक्तं भवति-प्राप्य, अहवा ते चेव उवसग्गे प्राप्य, कहं सहियव्वा , णाओ संगामप्तीसेवा (८८) ण तस्स किंचिवि अग्गमिति णागो, संगामसीसं, जं भणितं होति-अग्गाणीयं, सो हि अग्गतो ठितो दूरत्थेहि चेव उसुमादीहिं विमति, समीवत्थेहि य असिमादीहि य, सो य कृतयोगचा तह इण्णमाणोऽपि ण सीतति, पारमेव गच्छति, पारं नाम परेसिं जतो, एवं भगायाऽवि परीसहसतू पराजिता, एवंपि तत्थ विहरतो एवं अवधारणे वोसर्ल्ड काउं विदरंतओ, यदुक्तं भवति-अणवरज्झमाणो, एगया कदायि, गामि पविड्डेण णिवासोप लद्ध
दीप अनुक्रम
[३०४.
IANT३१
३१७]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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