Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [२], नियुक्ति: [२८४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१६]
प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-१६]
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श्रीआचा
10 उपायगा पहारअकोसदसमसगादिया, यदुक्तं भवति-पडिलोमा, परलोइया परलोकदुक्खुपायगा, यदुक्तं भवति-अणुलोमा, के लेबलौकिराम सूत्र- उभयलोइया, तंजहा-अस्सगतो पुरिसो अतिणेति, तहा अणुलोमे परलोमे य करेंति जहा अभयमुदरिसणस्म, भीमाई अणे- कोपसर्गादि चूर्णिः गरूवाई भीमा पुष्वभणिया, अणेगरूवाइ व भणिया, उबसम्माहिमारे एव अणुलोमा पढिलोमा य, जेण वुश्चति-अवि मुभि -IN
दुन्भिगंधाई अवि पदार्थसंभावणे, सुरमिग्गहणा अणुलोमन्महणं, दुब्भिगद्दणा पडिलोमा, पडिगहणा अणुपडिलोमग्गहणं सुर| मिगंधपुष्पमल्ल देवा पूएंता, मणुस्सा य तेहिं सुरभिएहि, दुरभिगंधेहि पाणभोयणेहि, चमरादिअस्तिता, दुरभिगंधा मासा गेया, | पडिमाए द्वियस्स अस्मादा गंधा आसी, जत्थ गंधो तत्थ रसोवि, जहा गंधाई तहा सदाईपि अणेगरूयाईपि, अणेगरूवाईपि अणु
लोमपडिलोमाई, अणुलोमा थुदवंदणापूयाअचणाई, णिभत्थगाति पडिलोमा, अहियासए सपासमाहिए (७४) फासाइंपि | विरूवरूवाई अहियासितबां, अहियासए सयत-णिचं, जहा एगदिवसंतहा अद्धतेरसवासे पक्खाधिने नाणादिरहि, पढिाइ | य-समिते सम्म इतो समितो वासीचंदणकप्पो समभावे दिनो, जह गंधरससहाई तहा फासाइंपि, विरूवरूपाइपि सुहासुहफासाई अवृत्तमवि पचति, एवं रूपाणिवि, अहवा अणेगरूबाइंति रूवग्गहणमेव कयं भवति, परिजइय-अहियासए समाहिते इति मंता भगवं अणगारे इति पदरिसणे, तंजहा-ते व सुम्भिसदा पोग्गला दुभिसद्दयाए परिणमंति, अहवा इमं मंता-कम्म| निजरा भवति अहियासेतस्स, इहरहा कम्मबंधो, ण तस्स अगार विजतीति अणगारो, किंच-सब्वेहिं विसरहिं अणुलोमपडिलो
मेहि अरती समुप्पजति, संजमरती ग भवति, अरर्ति रति च अभिभूता जा संजमे अरती उप्पअति पडिलोमेहिं उत्सग्गेहि, | विणा वा उपसग्गेडिं, असंजमे वा रती सद्दातिविसए पप्प पुधरतअणुस्सरणाओवा, ते अभिभूत सज्झाणेणेव रीयति माहणेति ।
दीप अनुक्रम [२८८३०३]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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