Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 292
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [८], उद्देशक [७], नियुक्ति: [२७५...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२३-२२६] प्रत श्रीश्राचा रांग पत्र चूर्णिः ७ अध्य ८ उद्देशः ||२८७॥ वृत्यक [२२३२२६] णादि पचखाएजा, णिसण्णो सपणन्थो वा, आउदृणपसारणं दिविसंचारणं च सम्बं काययोगं निरंभति, वायोयोग निरंभति, अहवा काय इति सरीरं तं वोसिरति, जोगे णाम तस्सेव आउंटणपसारणादी बाइयो गहितो, माणसियपि अपसत्थं निरंमति, रीयंानुपूर्वीच च गमणादि पचक्खाएज, पाओवगमणं भणित, समे विसमे वा पादवोविवजह पाडिओ, णागझुणा-कट्ठमिव आतडे तत्थV संचतितं सजकरेत्ता उ पतिपणे छिन्नकहं कहेजा जाव इयं विमोहामतणं हितं सुहं खमं निस्सेसं अणुगामिति ।। विमोक्षाध्ययनस्य सप्तमाद्देशकः समाप्तः॥ भणियं चउत्थउद्देसए वाघातिममरणं वेहाणसगद्धपढ़े च, पंचमे भत्तपणखाणं इच्चेयं छड़े इंगिणिमरणं, सत्तमए पाओवगमणं, अट्ठमए तेसिं तिण्हपि पडिसमणेण बुचति, पुषभणि तु जंभष्णइ तत्व कारणं०, ताणि तिनि भत्तपञ्चक्वाणाईणि, बाहातिमाणि वा अणुपुच्चीए भणियाणि, इमं पुण निब्यापातिगे चेव, जतोऽभिधीयते-अणुपुवेणं विमोहाई० (१७) अणुशमो अणुपूब्धी, तंजहा-पवजा सिक्वा वय अस्थग्रहणं च पुरिसं आमञ्ज अणुपुब्बी भत्तपचक्खाणं इंगिणि पाउवगमणं, संलेहणाणुपुब्बी तंजहा-चत्तारि विचित्ताई०, विमोक्वतेति विमोहा, जं भणियं-मरणाणि जाणि बीरा समासज, वीरा भणिता, बुसिमंता मतिमंतो, संजमो उसी जत्थ अस्थि जत्थ वा विजति सो उसिम, भणियं च-"संजमे वसता तु वसुD. सी वा, येनेन्द्रियाणि तस्य चशे, वसु च धनं वानाचं, तस्यास्तित्वान्मुनिसुमां" बुसिमं च बुसिमंतो, एवं मतिमंतोवि, यदुक्तं भवति-नाणमंतो, सर्व णच्चा अणेलिसं भत्तपञ्चक्खाणाइ तिविहं मरणविहाणं जो य जय विही जंच जस्स अणुण्णातं मरणं स्वतः संघयणधितिबलाणि आसञ्ज, अलिस इति अणण्णसरिसं, अट्ठाणे अरेलिसं, बालमरणाणि वा पहुच अणेलिसं, दुविहंमि ॥२८७ दीप अनुक्रम [२३६२३९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: अष्टम-अध्ययने अष्टम-उद्देशक: 'अनशन-मरण' आरब्धः, [291]

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388