Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [८], उद्देशक [८], नियुक्ति: [२७५...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-२५]
आततरादि
प्रत
श्रीआचारांग सूत्र
चूर्णि: ॥२९॥
वृत्यंक
[२२६गाथा १-२५]
तरमासज्ज सम्मं ठावति अप्पागं, पाओवगमणमियाणि, तंजहा-अयं वाततरे सिता(३५)अयमिति जो युवति अंततरो अंततरी वा आयतरो, पढिजह आयरे-द्रढग्गाहतरे धम्म मरणधम्मे इंगिणिमरणाओ आयतरे उत्तमतरेजो विवेकं करेति, नणु जो एवं अणुपालते तहेव एत्थवि पन्चज्जा सिक्खावय० जाव संलेहितुं णिवज्जति, सो पुण सधगायनिरोधेवि गातं हत्थषादं जतिथि से परिमट्ठाणट्टियस्स उत्तावितेहिं मुच्छा उप्पज्जति मरणं समुग्धातो वा तहवि ततो ठाणाओ णवि उम्भमे, दमट्ठाण स एव अवगासो, भाषट्ठाणं स एगो मरणभिग्गहो, ईसितमेव उज्जमे, एपस्त पादवेण उवमा कीरति पाओवगमणं, जहा पायवो अच्छिन्नोवि ण चलति, किं छिन्नपातो?, सो उज्झमाणे वा छिण्णमाणे वा विसमपडितो वा मित्तिकाउंण ततो ठाणाओ चलति, अण्णहा ठाणं ण करेइ, एवं एसोऽपि पातववत् पडितो निचलो निष्फंदो चिट्ठति, कत्थ पूण सो चिट्ठति ?-गामे अहवारपणे, कहं पुण गामेति ?, जति जाणइ एस गामो अचिरेण इंहिति, मम असमते घेव पाओवगमणा, ताहे गामे ठाति, इहरा तु सति | परकमे अरण्णे पेव करेति, अचिरं पडिलेहिता अचिरं णाम ठाणं, अहवा अचिरं कालं, कालकतं अविरं, तं पडिलेहित्ता पम- | ज्जेता बिहरे चिट्ठ माहणे विहरेति अच्छति णिसण्णे वा णिवण्णो वा चिट्ठति, उट्ठीयतो अच्छति, काउस्सग्गे ठिओ वा, माह| घोति वा समणेत्ति वा एगहुँ, णिश्चले निप्पडीकम्मो णिक्खिवति जं जहि जहा अंग, अचित्तं तु समासज्ज (३७) अचित्रं [अचेयणं किंचि अवटुंभणं जा कई वा कटुं वा तं आसज्ज समासज, यदुक्तं भवति-प्राध्य, तत्थवि किर कीरति अवलुमितं पाओ| वगमणं संमं, जो तिवत्य० पाओवगमणं, एतं कतरस्स?, अहवा अयं चंडिलं, सो थंडिल्ले णिसण्णो अबढेभो वा अविलंबितो वा || | चोसिरे सबसो कार्य सम्येहि पगारेहिं सब्बसो सबसस्था पणामए देहे परीसहाण णामए देहि किंचि परायतं एतं सरीर-10
दीप अनुक्रम २३६२६४]
॥२९४॥
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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